अनुवाद के अनुभव | ANUVAD KE ANUBHAV
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
63 KB
कुल पष्ठ :
5
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक समूह - Pustak Samuh
No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh
पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा - PURWA YAGYIK KUSHWAHA
No Information available about पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा - PURWA YAGYIK KUSHWAHA
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मूल्यांकन का प्रचलन है, उससे भिन्न, वैकल्पिक पर वास्तविक शिक्षा मुहैया करवाने की चेष्टा करने वाले
उपरोक्त “गुरुओं' से मेरा परिचय अनुवाद कर्म के कारण ही हो सका। अन्यथा स्कूली शिक्षा के विषय में मेरे
निजी अज्ञान का क्षेत्र आज और भी बड़ा और भारी होता।
शिक्षा से जुड़ी पुस्तकों के अनुवाद के अलावा बाल साहित्य के अनुवाद का सुखद सौभग्य भी मिला। इस
क्रम में कुछ अंग्रेजी और दो बांग्ला की रचनाओं को अनुदित करने का मौका मिला। इस प्रकार के अनुवाद
का सुख भिन्न ही होता है। इस कड़ी में मेरी चहेती एक पुस्तक थी श्री सुकुमार रॉय की रचना
'हॉजोबॉरोलॉ' | बचपन में जिस लेखक, कवि व चित्रकार की रचनाएं पढ़-सुन-देख कर हंसी से लोटपोट
हुआ करती थी, और तब बड़े होने पर हिन्दी में बच्चों के लिए हास्य रचनाओं की कमी पर दुखी, उनकी
किताब का अनुवाद अपनी बुजुर्ग मित्र मुकुलिका सेन के आग्रह पर किया था। मुकुल दीदी तब आईएस पद
से सेवा निवृत्त हो चुकी थीं और मेरी ही तरह सुकुमार रॉय को बेहद पसंद करती थीं। एकलव्य ने सहर्ष
हॉजोबॉरोलॉ का अनुवाद 'ऊल-जलूल' शीर्षक से छापा था। ऊल-जलूल को छापते समय एकलव्य ने बड़ी
सूझबूझ से अनुवाद के अंत में लेखक परिचय भी छापा जो सुकुमार रॉय के पुत्र सुविख्यात फिल्मकार
सत्यजीत रॉय ने स्वयं लिखा था।
बाल साहित्य के अनुवादों में ताज़ा अनुवाद नॉर्वीजी बाल साहित्यकार थूरब्योन एग्नर की किताब का है।
एग्नर की मूल नॉर्वीजी रचना के अंग्रेजी अनुवाद का शीर्षक था “व्हैन रॉबर्स केम टू कार्डिमम टाउन' | एग्नर
की यह रचना नॉर्वे में 1955 में छपी और तब से ही लोकप्रिय रही है। पुस्तक के हिन्दी अनुवाद “जब लुटेरे
इलायचीपुर आये' के विमोचन के दौरान कुछ ऐसे नॉर्वीजी स्त्री-पुरुषों से मुलाकात हुई जिनकी बचपन में
उसे चाव से पढ़ने और उसका रस लेने की स्मृतियां आज तक ताज़ा हैं। पुस्तक के रसीले गद्य के अलावा
उसके दो अन्य आकर्षण हैं। एक तो एग्नर के अद्भुत चित्र जो बच्चों ही नहीं वयस्कों का भी मन मोहते
हैं। दूसरे उसकी कविताएं | लगभग सभी प्रमुख पात्रों के गीत हैं जिनकी स्वर-लिपि तक मूल पुस्तक और
उसके अंग्रेजी अनुवाद में दी गई है। नॉर्वेजी मित्रों ने बताया कि गर्मियों में कई शहरों में इनकी प्रस्तुतियां
की जाती हैं। इस अनुवाद में सबसे बड़ी समस्या इन गीत-कविताओं को लेकर ही थी। कविता में मेरी
कोई गति नहीं है यह जानती ही थी। जाहिर था कि छंदबद्ध कविताएं लिखने में दक्ष किसी कवि मित्र का
सहारा लिए बिना पुस्तक के साथ न्याय नहीं हो सकता था। विरासत फाउन्डेशन के विनोद जोशी ने तब
श्री गोपाल प्रसाद मुदूगल का नाम सुझाया| उनके लिखे गीतों ने अनुवाद में प्राण फूंक दिए। यह कहने में
संकोच नहीं कि उनके रचे गीत अंग्रेजी पाठ पर आधारित होने के बावजूद उनसे बेहतर बन पडे हैं।
यह प्रश्न कभी-कभार मुझसे भी पूछा गया कि अनुवाद कैसे किया जाता है, या अच्छा' अनुवाद कैसे किया
जाता है ? मुझे आज तक इन सवालों के सटीक जवाब सूझे नहीं हैं। उत्तरों की तलाश मुझे भी रही है।
पर “अच्छे” अनुवाद को लेकर एक निजी मान्यता सामने रखने का कई बार साहस किया है जिसकी अक्सर
प्रतिकूल प्रतिक्रिया ही मिली है। वही साहस एक बार फिर से करती हूँ. इस आशा के साथ कि शायद कोई
सुधि पाठक मान्यता को खारिज भी करे तो कुछ ऐसे तर्कों के साथ कि हमारी साझी समझ स्पष्ट हो सके |
तो निजी मान्यता यह है कि जिस लेख-आलेख, कथा-उपन्यास का अनुवाद किया जा रहा हो वह जितनी
सरल-सरस-सुंदर भाषा-शैली में होगा उसका तर्जुमा उतना ही सरल-सरस और सुंदर बन पड़ेगा। दूसरे
शब्दों में अच्छे” अनुवाद के श्रेय का अधिकांश भाग मूल लेखक को ही जाना चाहिए।
तो विवाद यहीं शुरू हो जाता है, क्योंकि सामने वाला तब यह कहता है कि : वाह! बड़ी चतुर हैं आप |
बड़ी सिफत से कमज़ोर अनुवाद का ठीकरा भी मूल लेखक के मत्थे फोड़ डाला | पर मैं दरअसल श्रेय
User Reviews
No Reviews | Add Yours...