पराये घोंसले में | PARAYE GHONSLE MEIN

PARAYE GHONSLE MEIN by पुस्तक समूह - Pustak Samuhफ्योदोर दोस्तोएवस्की -FYODOOR DOSTOEVSKY

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

फ्योदोर दोस्तोएवस्की -FYODOOR DOSTOEVSKY

No Information available about फ्योदोर दोस्तोएवस्की -FYODOOR DOSTOEVSKY

Add Infomation AboutFYODOOR DOSTOEVSKY

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मिख़ल्कोव ने इस उक्ति के बारे में अपने विचार इन शब्दों में प्रकट किये हैं : “असहाय जीव को पहुँचाये गये ज़रा से दुख, उसके एक आँसू से ही बुरी तरह व्यथित होने वाले व्यक्ति के हृदय में बच्चों के प्रति जो गहरा प्रेम है, उस प्रेम ने ही लेखक से ये शब्द लिखवाये होंगे।” 1971 में जब दोस्तोयेव्स्की की 150वीं वर्षगाँठ मनायी जा रही थी तो उस अवसर पर उनकी कहानियों और उपन्यास-अंशों का एक संकलन “बच्चों के लिए! नाम से प्रकाशित हुआ। उसी की भूमिका में मिख़ल्कोव ने उपरोक्त बात लिखी थी। यहाँ प्रस्तुत कहानी इसी पुस्तक से ली गयी है। ._ यह एक जमींदार और एक गरीब किसान औरत की अवैध सन्‍्तान की कहानी है। लड़के को दयावश ऊँचे घराने के बच्चों के बोरिंग स्कूल में दाखिला दिला दिया जाता है। वहाँ उसे अमीर घरों के लड़कों के हाथों कदम-कदम पर उत्पीड़न और अपमान का सामना करना पड़ता है। बोरिंग का प्रमुख तुशार उसे काउण्टों, सीनेटरों के बच्चों से अलग एक छोटी सी कोठरी में रखता है और ऊपर से यह एहसान भी जताता है कि वह गरीबों-अमीरों के बच्चों में कोई भेद नहीं करता। बच्चे की माँ अपनी पोटली में कुछ माल्टे, बिस्किट और फ्रेंच बंद लिये उससे मिलने आती है। बोरडिंग के प्रमुख और उसकी पत्नी माँ के ऊपर खूब अहसान जताते हैं और वह कृतज्ञता के बोझ से दबी हुई दयनीयता का व्यवहार करती है जिससे बच्चा बहुत आहत और अपमानित महसूस करता है। सहपाठियों द्वारा मजाक उड़ाये जाने के अंदेशे से भी वह लगातार भयभीत है। इस तनाव में वह माँ से प्यार करना तो दूर, उससे रूखा बरताव करता है और उस पर झुँझलाता भी है लेकिन माँ के चले जाने के बाद दुख से उसका कलेजा ऐंठने लगता है। जो प्रेम उसने प्रकट नहीं किया, वह उसके मन को कचोटता रहता है। कहानी अमीरी-गरीबी में बँटे समाज में, विशेष तौर पर बच्चों की त्रासद स्थिति पर सोचने के लिए पाठक को मजबूर करती है। गरीब बच्चों को अक्सर उन बच्चों के हाथों अपमान का सामना करना पड़ता है जो बेहतर घरों से आते हैं। हालाँकि खुशहाल घरों के भी सभी बच्चे ऐसा नहीं करते। उनमें से कुछ सहदय भी होते हैं, पर कुछ तो गरीब बच्चों को तरह-तरह से अपमानित कर ही देते हैं। आज भी यदि कोई गरीब आदमी बेहतर शिक्षा के लिए पेट काटकर अपने बच्चे को महेँगे स्कूलों में दाखिला दिला देता है, तो वहाँ सहपाठियों और शिक्षकों तक के हाथों उस बच्चे को तरह-तरह के, स्थूल और सूक्ष्म, प्रत्यक्ष और परोक्ष अपमानों का सामना करना पड़ता है। कुछ नहीं तो हालात ही दिमाग पर लगातार दबाव बनाये रखते हैं और बच्चे के कोमल मन को क्षत-विक्षत करने के साथ ही उसके व्यक्तित्व को कुचल देते हैं। यह कहानी बड़ों के साथ ही बच्चों को भी उन सामाजिक हालात पर सोचने के लिए मजबूर करती है, जो कहानी के मुख्य पात्र की पीड़ा और उसकी माँ के वेदनापूर्ण जीवन के कारण हैं। बच्चे इस सवाल पर सोचेंगे कि उनका व्यवहार अधिक न्यायपूर्ण और मानवीय हो सकता है और कल, जब वे बड़े होंगे तो ऐसे हालात को बदलने के लिए भी कुछ करने की सोच सकते हैं।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now