फूल से बीज तक | PHOOLON SE BEEJ TAK

PHOOLON SE BEEJ TAK by किशोर पंवार - KISHOR PANWARपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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14 रेनोबोफिका, गए आलू व्यापारिक दृष्टि से हल्की किस्म के होते हैं क्योंकि लैंगिक अजनन के फलस्वरूप उत्पन्न नए संयोग तात्कालिक लाम एवं गुणवत्ता की दृष्टि से उपयुक्त नहीं होते। संकरण: लैंगिक और कायिक मा ] प्रकृति में भी यह यदा-कदा होता रहता है जिसके फलस्वरूप नई किसमें बनती हैं। दो भिल्‍न किस्मो के बीच कृत्रिम रूप से निषेचन करवाने से भी संकर किसमें तैयार होती हैं। #५६ इस विधि में नर व मादा का चुनाव मनुष्य उनके गुणों के आधार पर करता है। आज प्रचलित कई उन्नत फसलें व दुघारू पशु इसी तरह बनाए गए हैं। इस विधि द्वारा पंघों की कुछ एकदम नई प्रजातियों भौ तैयार की गई हैं। बसलनग किक मूली हैफेनल) और गोभी क्लेशिक) के संकरण से एक नई प्रजाति रेफेनोब्रेसिका तैयार की जई है। इसी तरह राई (सीकेल) तथा गेहूँ (ट्रेटिकम) के संकरण से 'द्विटिकेल नाम का एक नया अनाज बनाया गया है। ये सब प्रजनन के साथ छेड़छाड़ के उदाहरण हैं। संकरण का ज़्यादा विकसित तरीका है किक संकरण (डध्ताबषठ ॥५७१७४०/००)। इसमें नर य मादा जनन कोशिकाओं की बजाय दो वर्ची (७०७७४॥५७) कोशिकाओं को मिलाया जाता है। अलग-अलग प्रजातियों की कोशिकाओं का प्रयोगशाला में संकरण कराया जाता है। इरु विधि से प्राप्त पौधे साइब्रिड (०1७४०) कहलाते हैं। संकरण का एक नया कदम ] की पूरी वर्धी कोशिका का संलयन (७४०॥) करवाने की बजाय एक कोशिका का केन्द्रक हटाकर उसमें किसी दूसरी कोशिका का केन्द्रक डाल दिया जाता है। डॉली जीनोम क्लोनिंग का एक उदाहरण है। देखें यह कैसे हुआ। जया एलजैबी ता 7




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