विचित्र वधू-रहस्य | VICHITRAVADHU RAHASYA

VICHITRAVADHU RAHASYA by पुस्तक समूह - Pustak Samuhरवीन्द्रनाथ टैगोर - RAVINDRANATH TAGORE

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रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ पहला परिच्छेद । विभा ने सुरमा का हाथ पकड़ कर कहा--“ भाभी, श्रगर पिताजी सुन पावे तब ?” खुरमा ने कहा--“ तब और क्या होगा ? हम लोगों पर उनका कुछ स्नेह भाव थाड़ा ही है । अगर कुछ है भी ते वह न रहेगा इतना ही न | इसके लिए कोई कहाँ तक डरे।?” विभा ने कहा--/ नहीं भाभी, मुझे बड़ा डर लगता है। अगर किसी तरह का दराड ही दे ?!? सुरमा ने लम्बी साँस लेकर कहा--“मुझे! पूरा विश्वास है, संसार में जिसका काई रक्षक नहीं उसकी रक्षा भगवान करते हैं। हे इेश्वर ! तुम अपने नाम का कलड्डित न करो। तुम पर जो मेरा अटल विश्वास है, उसका भद्ग न करो !”




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