अब हम आज़ाद हैं | AB HAM AZAD HAI

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डेनियल ग्रीनबर्ग -DANIEL GREENBERG

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा - PURWA YAGYIK KUSHWAHA

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4 जादूगर का शागिर्द जब ल्यूक अस्पताल के रोग-विज्ञानी के साथ काम करने गया, वह आधिकारिक तौर पर सडबरी वैली का पहला बाहरी प्रशिक्षु बना। यह सम्भव ही नहीं था कि हम परिसर में उसके लिए शक्‍-परीक्षण की व्यवस्था कर पाते। परिसर की प्रयोगशाला व्यवस्थाएँ चाहे कितनी भी विस्तृत क्यों न होतीं, हम मानव शव की जाँच की व्यवस्था नहीं कर सकते थे। पन्द्रह वर्ष की उम्र में ल्यूक दो दिशाओं में से किसी एक की ओर मुड़ सकता था। या तो वह छह-सात साल रुकता, जब तक वह कॉलेज खत्म न कर लेता, और तब अपने चुने हुए क्षेत्र में आगे बढ़ता; या फिर वह उस वक्‍त आगे बढ़ता जब उसकी तैयारी हो चुकी हो, जो इस समय थी। हमें उसके रुकने का कोई कारण नज़र नहीं आया। हम एक-एक कर स्थानीय चिकित्सकों के पास गए और पूरा मामला उनके सामने रखा, जब तक कि हमें ऐसा व्यक्ति नहीं मिल गया जो हमारी तरह सोचता था। हमने उसके साथ एक करार किया, उसी तरह जिस तरह हम स्कूल में अपने पढ़ाई सम्बन्धी सौदे करते हैं: आपको ल्यूक के रूप में एक निःशुल्क सहायक मिलेगा, क्योंकि यह उसकी शिक्षा का ही हिस्सा है; बदले में आप ल्यूक को फलॉ-फलों तयशुदा प्रशिक्षण देंगे। इस प्रशिक्षण का विस्तार से खुलासा किया गया था। सभी पक्षों ने शर्तों का अनुमोदन किया, और इस तरह स्कूल का पहला प्रशिक्षु कार्यक्रम शुरू हुआ। 30 जादुगर का शागिर्द यह विचार सबको भाया। जब जिल की नाटक में रुचि जगी, वह जल्दी ही स्कूल के परे निकलने को तैयार थी। उसकी रुचि नाटक की व्यवस्थाओं में थी - मेकअप, वेशभूषा, दृश्य, प्रकाश। वह केम्ब्रिज के लोएब थिएटर में प्रशिक्षु बबी, और अधिक समय नहीं गुज़रा था कि उसे देशभर के पेशेवर थिएटरों में मदद के लिए काम मिल गया। उसके इस नए धन्धे ने उसे कॉलेज की पढ़ाई का खर्च वहन करने में मदद की। कॉलेज से थिएटर की डिग्री ने उसे अपने पेशे में आगे बढ़ाया। कब स्कूल में बने रहना है और कब उसे छोड़ आगे बढ़ जाना है? इस बात का फैसला करना अक्सर कठिन #हा है। चौदह साल की उम्र में सॉल फोटोग्राफी में डूब गया। वह स्कूल के डार्करूम का उपयोग कर फोटो प्रयोगशाला की बारहखड़ी सीखने लगा। जल्दी ही वह स्कूल में उपलब्ध साधनों से असन्तुष्ट हो चला, परन्तु कोई अन्य स्थान तलाशने की बजाय उसने उपलब्ध संसाधनों को सुधारने का निर्णय लिया। धीमे-धीमे, मेहनत से उसने कारखाने में बढ़ईगिरी सीखी। उसने तकनीकी फोटोग्राफी मार्गदर्शिकाओं का अध्ययन किया। साल भर के परिश्रम से उसने फोटो प्रयोगशाला का कायाकल्प कर डाला। इसके लिए उसने ज़रूरत पड़ने पर काम में लिए गए उपकरण खरीदे। क्‍योंकि वह स्कूल का चौथा विद्यार्थी था जो फोटोग्राफी के प्रेम में पड़ा था और जिसने डार्करूम को पुनर्निर्मित कर दिया था, जब तक उसने अपना काम खत्म किया वह स्थान सच में उम्दा नज़र आने लगा था। पर जब वह सोलह साल का हुआ तो यह भी उसके लिए नाकाफी था। उसे किसी उस्ताद से व्यावहारिक प्रशिक्षण की दरकार थी। हफ्ते दर हफ्ते सॉल बॉस्टन के गली-कूचों में किसी व्यावसायिक फोटोग्राफर की तलाश करता रहा जो उसे शागिर्द बना ले। प्रतिक्रिया उत्साहजनक नहीं थी। “कॉलेज में जाओ,” एक ने कहा। “बड़ी प्रोसेसिंग प्रयोगशाला में काम करो,” दूसरे ने कहा। जब तक वह जो के पास पहुँचा वह यह सीख चुका था कि उसे अपनी बात कैसे रखनी है। जो की सारी आपत्तियाँ एक के बाद एक दूर कर दी गईं। पर जो किसी किशोर को प्रशिक्षित करने का जोखिम नहीं उठाना चाहता था। “किशोरों से पहले भी मेरा वास्ता पड़ चुका है,” वह बोला, “और वे सब बेहद गैर-ज़िम्मेदार होते हैं। वे समय पर नहीं आते, वे गड़बड़ियाँ करते हैं, और काम 31




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