हरिकृष्ण देवसरे की चुनिन्दा बाल कहानियाँ | HARIKRISHN DEVASARE- CHUNANDA BAL KAHANIYAN

HARIKRISHN  DEVASARE- CHUNANDA BAL KAHANIYAN by डॉ हरिकृष्ण देवसरे - Dr. Harikrashn Devsareपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“इसलिए कि में इस नन्‍्हीं सी जान को बचाना चाहता था।” कहकर मैंने उसे वह फूल दिखाया | “बचाना चाहते थे!” तूफान ठठाकर हंसा और उसने फूल छीनकर नोच डाला। उसकी पंखुड़ियां बिखर गई। मैंने उन्हें उठाना चाहा लेकिन उसने धक्का देकर मुझे धरती पर ढकेल दिया। धरती पर गिरकर मैं बेहोश हो गया | जब मुझे होश आया तब मैं उस फूल की खुशबू से चौंक उठा। मैंने देखा कि वहां एक यक्ष बैठा है। “तुम कौन हो?” मैंने पूछा । “में उसी फूल की आत्मा हूं।” यक्ष ने कहा, “आत्मा कभी नहीं मरती। तुमने मेरे साथ अपनी दोस्ती पूरी की है। इसलिए अब मैं तुम्हें अपना बना लूंगा” - कहकर उसने मुझे छू दिया । और मैं सुंदर गुलाबी रंग का फूल बन गया । “अब हम दोनों साथ-साथ रहेंगे।” यक्ष ने कहा । मैंने देखा कि वह मुसकरा रहा है। पलभर बाद वह मेरी ही बगल में हवा के झोंके से फूल बनकर लहराने लगा। हम दोनों की सुगंध पूरी हवा में फैल गई। उसके साथ ही साथ हमारा परिवार भी फैलने लगा। लोगों ने हमें 'गुलाब' नाम दिया | तब से आज तक हम बराबर मुसकराते और सुगंध बिखराते रहते हैं। “ठीक है, आज आप सभी फूलों के राजा हुए,” बेला ने प्रस्ताव रखा। “में इस प्रस्ताव का समर्थन करती हूं।” चमेली ने नग्नता से कहा | हवा चलने लगी। सुबह की भीनी और ठंडी हवा के झोंके से फूल-फ़ूल थिरक उठा। “कितने आश्चर्य की बात है कि ये फूल-पौधे भी बातें करते हैं ”” अजय ने परी से कहा। “लेकिन इसमें आश्चर्य की क्‍या बात है?” परी ने कहा, “ये पेड़-पौधे भी इंसानों जैसा ही जीवन बिताते हैं। इन्हें भी गर्मी लगती है, सर्दी लगती है। बीमार हो जाते हैं और खुश भी होते हैं। कड़ी धूप में ये सूखकर प्राण दे देते हैं। सर्दी में झुलस जाते हैं। बीमार हो जाते हैं। कभी पाला लग जाता है तो कभी सड़ने की बीमारी हो जाती है। इसके अलावा अगर ठीक से खाना-पीना मिलता है तो खुश भी रहते हैं।' “सचमुच, ये तो हमारी ही तरह हैं !” अजय ने कहा । “लेकिन तुम्हारी तरह बोल नहीं सकते। वैसे अगर इनकी डाल काट दो तो इन्हें उतनी ही पीड़ा होती है जितनी तुम्हें हाथ कट जाने पर होगी । ये बेहोश भी हो जाते हैं। इन्हें सांप का जहर भी चढ़ता है। ये आपस में बातें कर लेते हैं, लेकिन हर आदमी नहीं समझ सकता | 15




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