बेझिन चरागाह | BASIN CHARAGAH

BASIN CHARAGAH by इवान तुर्गनेव -Iwan Turgnevपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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इवान तुर्गनेव -Iwan Turgnev

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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और वह ऊपर डग नाप रहा था, जहाँ चक्‍के हैं। वह ऐसे टहल रहा था और तख्ते तो बस उसके बोझ से सारे झुके जा रहे थे, चरमरा रहे थे; हमारे सिरों के ऊपर से होता हुआ वह गुजर गया और अचानक चक्‍के पर जोर से पानी गिरने लगा; चकक्‍्का खड़खडाया, खड़खडाया और लो चल दिया; और पानी के डट्टे तो बंद थे। हम हैरान: यह किसने डट्टे उठा दिए कि पानी बहने लगा; चकक्‍का थोड़ी देर घूमा और फिर रुक गया। अब वह ऊपर के दरवाजे की ओर चल दिया और जीने से उतरने लगा। सीढ़ियाँ तो जैसे उसके बोझ से कराह उठी... आखिर वह हमारे दरवाजे तक आ गया, थोड़ी देर खड़ा रहा, खड़ा रहा और फिर दरवाज़ा एकदम सारा का सारा खुल गया। हमारी तो बस सिट्टी-पिट्टी गुम! पर देखा तो कुछ है ही नहीं... और अचानक देखते क्या है कि एक टंकी का जाल हिलने लगा, फिर वह उठा, उठता गया, फिर नीचे हो गया, हवा में यों घूमा जैसे कोई उसे फटक रहा हो और फिर अपनी जगह जा टिका। अब एक दूसरी टंकी के पास एक कॉँटा अपनी खूंदी से उतर गया और फिर खूंटी पर जा लटका; फिर मानो कोई दरवाजे की ओर चल दिया और अचानक ऐसे जोर से कोई खाँसा-खँखारा, बड़ी भारी-भारी आवाज़ में। हम सब तो बस एक दूसरे से चिपक गए, सिर दुबकाने लगे... तौबा, कितना डर गए थे हम!” “ओहो!” पब्लृुशा बोला। “पर वह खॉँसा क्‍यों?” “पता नहीं, शायद सीलन थी, इसलिए।” बेकित चानागाह 16




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