विकास की चुनौतियाँ | CHALLENGES OF DEVELOPMENT

CHALLENGES OF DEVELOPMENT by पुस्तक समूह - Pustak Samuhविकास की चुनौतियाँ दामोदर धर्मानंद कोसम्बी - DAMODAR DHARMANAND KOSAMBI

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दामोदर धर्मानंद कोसांबी - Damodar Dharmananda Kosambi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सब असम्भव रुकाबटें प्रतीत होती हैं। बहुत ही कम लोग सामान्य जन को इसमें रुचि लेने के लिए प्रेरित करते हुए भर गाँवो में उपलब्ध तकनीकों का उपयोग करते हुए, विकास की सम्भावना और जरूरत का अनुभव करते हैं। मैं श्रपनी बात को फिर एक उदाहरण दे कर स्पष्ट करूंगा । गंग हो जापानी आक्रमण के समय जब चीन के सभी प्रधान ग्रौद्योगिक क्षेत्र छित गये और कॉमितांग सेनाएँ देश के पिछले ' भाग में ठेल दी गयीं, तब सप्लाई की समस्या कठिन ही गयी । ध्यांग काई शेक को अपती सेनाओं के लिए बीस हजार कम्बलों की जरूरत पड़ी और उन्हें दूर से आयात करने का कीई रास्ता न था। वे कम्बल एक विश्येष व्यक्ति और एक विशेष आन्दोलन यंग हो (सहयोगी का्य ) सहकारी द्वारा प्रदान किये गये, जिसका .. गठन न्यूजीलेंड के रेवी एली के निर्देशन में किया गया था। वह चीन को अच्छी तरह जानता था और वहाँ की जनता के साथ बीस साल से ऊपर तक काम कर चुका था। कम्बल दस्तकारी पद्धति से बनाए गये थे, गुण की दृष्टि से संतोषप्रद थे और कठोर उपयोग में टिकाऊ थे । बावजुद इसके, एक साल से कम समय में उनकी सप्लाई की गयी थी । क्‍ लगभग दो हजार मील से अधिक के घेरे में छोटी इकाईयों में बिखरे हुए, भ्रशिक्षित मजदूरों के एक बंडे बहुमत को ले कर जिस पद्धति से इस कार्य को संगठित किया गया था, निसन्देह सम्पूर्ण योजना की सर्वाधिक विस्मयकारी विशेषता है। मेरी तो सिफ इतनी ही इच्छा है कि गंग हो का इतिहास लिख कर प्रकाशित “--१ ४-+- सी० सी० गुठ, कग्स, संग्स और उनके पिठु लोग आते हैं, जो संयुक्तराज्य श्रमेरिका में देश का सोना चुरा-च्ुुरा कर जमा करते रहें औौर लड़ाई को स्वर उसी के हाल' पर छोड़ दिया । विज्ञानों की एकादमी ( एकादमिया सितिक्रा ) चुंगकिग झौर कुरमिंग ले जाई गयी। मुभे याद है कि भारत से मैं उनके लिए व॑ज्ञातिक परिपत्रों की प्रति्ाँ तंयार करके भेजा करता था, इनसे वे ऐसे शोध में सहायता लेते थे जिनका युद्ध या राष्ट्रीय जरूरतों से कोई सम्बन्ध न था। कुछ मामलों में मु्भे प्रकाशन की व्यवस्था भी करनी पड़ी थी । कुछ भले वैज्ञानिक और विद्वान भारत में उदार सरकारी सहायताओं पर अध्ययन कर रहे थे । सेना के एक कैप्टेन ने भारतीय दर्शन का पअ्रध्ययत करने के लिए लम्बी छुट्टी ले रखी थी, जब कि उसकी टुकड़ी मो की पंक्ति पर लड़ रही थी। युद्ध के वर्षों में बच निकलने की उसने बिता कठिनाई के व्यवस्था कर लीथी। दूसरे शब्दों में, ग्रन्ततः सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ ही निर्धारक तत्त्व थे । स्थानीय तकनो के ह इसके होते हुए भी, इससे एक और आराधारिक सिद्धान्त निकालने दीजिए, यांत्रिकीय मामलों में विशेषतः उपभोग बस्तुग्रों के निर्माण में, जितना सम्भव हो उतनी संल्या सें स्थानीय उत्पादकों को लेते हुए, स्थानीय तकनीक का उपयोग करो | स्वभावत:, इसका अर्थ प्राथमिक उत्पादकों से है, न कि सूदखो रों से, न कि सामंतों से । इसका अर्थ लालफीताशाही से रहित एक संगठन से भी है । इस स्थल पर मुझे इस प्रणाली में और हाथ की कताई वाले कर दिया जाय, और सभी श्रल्प-विकसित देशों के लिए उसे सुलभ कर दिया जाय। इस मामले में, एली ने हिसाब की एक ऐसी प्रणाली तयारी की थी, जिससे क्लर्की के सभी कामों से छुट्टी मिल गयी थी । मजदूर अ्रपनी इच्छा से मनपसन्द टुकड़ी में शामिल हो जाते, चाहे वह परिवार हो, चाहे दस्तकार-संघ, झौर एली हरेक मामल में आरम्भ के समय उन्हें निर्देशित करता । देश के पिछले हिस्से में रहने वाले गड़ेरिए ऊन तेयार करते थे । ऊन की एक- गाँठ कताई करने वालों को दे दी जाती थी, एक रंगीन दाना भोले में रख दिया जाता था । जब एक गाँठ कताई के परेतों पर खर्च हो जाया करती, तब भोले से एक रंगीन दाना निकाल लिया जाता था, जिससे कि मौजूद भाल से शेष की तुलना की जाती थी। सूत की प्रति इकाई (बड़ी लच्छियाँ) तैयार की गयी, एक दूसरे रंग का दाना दूसरे भोले में रख दिया गया। उसी तरह से लच्छी बुनकरों को सप्लाई की गयी और कम्बल तेयार किए गये । बिना कागजी कार्य के, बिना श्रवरोध और बिना किसी क्षेति के इस प्रणाली द्वारा काम किया गया | इस तरह उपक्षित क्षेत्रों में लोगों को रोजगार मिला और सैनिकों को कम्बल मिले । सोचता हूँ कहानी यहीं खत्म कर दूँ । दुर्भाग्यवश, जो कम्बल च्यांग के कर्मचारियों को मिले, वे सब सैनिकों तक न पहुँच पाए । काल बाजार में भी वे कम मात्रा में नहीं पहुँचे । दूसरे अष्ट कमंचारियों ने जिला सहकारियों, इकाइयों और बड़ी से बड़ी उद्योगशालाझों के व्यवस्थापक बनने में सफलता प्राप्त कर ली और जितना लुठते बना छूटते रहे । इसमें सबसे ऊपर च्यांग काई शक, चर्खा-दर्शन में जो मूलभूत श्रन्तर है, उसे स्पष्ट कर देना है १ चर्खा निर्माण की पूरी अवधि में कार्यान्वित होने में अपर्याप्त और अमितव्ययी है। स्व० महात्मा गाँधी ने हाथ की कताई में रहस्यात्मक गुणों की खोज की थी, जिसने इसे विद्युत-कताई मशीन से ऊपर उठा दिया था। परिणामित खट्टर वस्त्र के आकड़ों की विशद व्याख्या करने की अ्रपेक्षा, मैं आपको विश्वास दिला सकता हूँ कि इसका प्रभाव राजनीतिक था, किस्तु खास राष्ट्रीय उत्पादन के क्षेत्र में कुछ कहना ही नहीं है। युद्ध के पहले ब्रिटिश : ग्रायातों का बहिष्कार करने के लिए इसने लज्जित किया और क्रान्तिकारी के लिए पट्टी के काम झाया | भ्राज खदर सरकारी बजटकी एक नाली है और पेशेवर राजनीतिकों या उनके सेवकों : का एक चिन्ह है । क्‍ फिर भी, हैंडलूम उत्पादों से इसका स्पष्ट विरोध है, जिसने ग्रदूभूत नमूने पेश किए हैं, और भारतीय निर्यात के लिए एक कीमती सहायता रहा है। हैंडलूम जिसका अर्थ कार- खाने में कताई की गयी लच्छी से है, उत्पादन के श्रतिरिक्त समय के साधन रूप में, खास तौर से जब कृषि सम्बन्धी क्रियाएँ शिथिल पड़ गयी हों, उपयोग किया जा सकता है | यदि इसकी उचित देख-रेख में इसका उपयोग हो तो यह कपड़े के निर्यात में बचत कर सकता है झऔर दुकानदार के काले बाजार का एकाधिकार भंग कर सकता है। अंशत:ः अक्षम और अन्यथा बेरोजगार लोगों को उपयोगी उत्पादन में लगा देने के लिए भी इससे विचारणीय सहायता मिल सकती है। अन्ततः स्थानीय साधनों श्रौर सामग्रियों की सहायता से यह कार्य में सरल और अ्जनत है “7-२




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