मोरा | MORA
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
42
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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मुल्कराज आनंद - Mulkraj Aanand
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मैंने उसको कहते सुना, “अगर इस हथिनी को और उसके बच्चे को
जिंदा पकड़ ले जा सके तो मुँहमागे दाम मिलेंगे |
हम क़िसी तरह जान बचाकर भागे, आगे-आगे मैं और पीः
इस बार तो हमने जान बचा ली थी ।
भागते-भागते हम एक झील के किनारे पहुँचे जहाँ खूब ऊँची-ऊँची
घास उगी थी। मुझकों खूब भूख लगी थी। छक कर घास खायी।
लेकिन मेरी माँ ने तीन दिन तक खाना नहीं छुआ |
वह अपनी सूँड से मझको कसकर पकड़े रही और आँसू बहाती रही ।
मेरी आँखों से भी आँसू गिरने लगे। |
पेट में न जाने केसी बेचैनी-सीं होने लगी ।
ओर तब माँ ने मुझको बताना शुरू किया कि शिकारी नाम का दुष्ट जीव
कितना बेरहम होता है ।
माँ ने मुझको गाँवों और शहरों में आदमियों के साथ रहनेवाले हाथियों के
बारे में बताया ।
उसने बताया कि ये हाथी आदमियों के गुलाम बन जाते हैं और उनकी सेव
करते हैं ।
उसने मुझको बताया कि अपनी देखभाल केसे करनी चाहिए ।
सुनकर -भी न सुनना, देखकर भी न देखना ।
सिर्फ अपनी लंबी नाक से मीलों दर तक सूँघना और सोचना ।
माँ ने बताया कि हाथी सारी दुनिया में अप॑नी बुद्रि के लिए मशहूर हैं।
उसने संमझाया कि मुझे होशियार बनना चाहिए, अपने से जो कमजोर हों
उनकी मदद करनी चाहिए | दिल का मजबूत होना चाहिए, और अपना
टाना चाहिए ।
| माँ ।
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