गली मोहल्लों के कुछ खेल | GALI MOHALLON KE KUCH KHEL

GALI MOHALLON KE KUCH KHEL by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaमुल्कराज आनंद - MULKRAJ ANAND

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मुल्कराज आनंद - Mulkraj Aanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हवा पर निर्भर करता है, कि पतंग ऊपर आकाश में टिक जाये। यह भी हआ है कि मझसे बड़े ने पतंग की डोर मेरे हाथ में दे दी। जब वह खब ऊपर आकाश में काफी ऊपर टिक गई थी। डोर को थामकर पतंग को खब ऊपर उड़ाना खब मजा देता है। लेकिन कई बार इससे और कांच-सने मंझे से मेरी अंगलियां कट जाती थीं। नतीजा यह हआ कि मेरी अपनी पसंद की अच्छी पतंग खरीदने के लिये मझे जरूरी पैसा नहीं मिलता था। और जब मैं अपनी पतंग खरीदता था तो वह पतंग गांव की झोंपड़ियों से ऊपर भी नहीं चढ़ती थी। और जब तेज हवा में अपनी पतंग उड़ा लेता था तो वह किसी पेड़ की डाल पर फंस जाती थी या था भी होता था कि एकदम पतंग कटती थी और दूसरे उसे लट लेते | छ्र्या इसे दो बच्चे खेलते हैं- एक के पीछे एक भागते और पकड़ते। पहला बच्चा दौड़कर लकड़ी के दरवाजे को या कंडी को या हत्थे को लेता है। फिर दौड़ लगाता है अगले दरवाजे तक क कि वह पकड़ा न जाये। . इस तरह वह एक से दसरे दरवाजे तक दौड़ लगाता है जब तक कि वह दरवाजे को न छने के कारण पकड़ा न जाये। समझदार बच्चा भागते में गली-बाजार के बीच आये मोड़-तोड़ में से बचता हआ निकल जाता है। होता यह है कि पकड़ने वाला जब पकड़े जाने वाले को पकड़ लेता है तो पकड़ में आने वाला पंकंड़ने वाला बन जाता है।




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