गृहस्वामिनी | GRAHASWAMINI

GRAHASWAMINI by पुस्तक समूह - Pustak Samuhवांग रुनुची - WANG RUNUCHI

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वांग रुनुची - WANG RUNUCHI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गृहस्वामिनी 16 सुन था। जेसे ही वह आंगन में घुसा उसने किसी तुनकमिजाज इन्सपेक्टर की नजरों से चारों ओर देखा और बोला, “कितनी गंदगी है इस जगह! अब यहां कुआं खुदवाने का क्‍या तुक है? इससे कोई फायदा नहीं होने वाला।” बड़ी सावधानीपूर्वक चलकर कुंए के कगार तक गया और झुककर अंदर देखने लगा। फिर मुड़कर बूढ़े पार्टी सेक्रेटरी से पूछा, “क्या यह कल तक बनना खत्म हो जाएगा?” जन “नहीं, इसमें कम से कम चार दिन और लग जाएंगे।” सुन कुछ देर तक सोचता रहा, फिर निर्णयात्मक स्वर में बोला, “तो फिर इसे भरवा दीजिए। इतनी गंदी जगह हमारे सम्मानीय अतिथि के देखने योग्य कदापि नहीं है। और, किसी भी देश में लोग इतनी आदिम पद्धति से कुंआ नहीं खुदवाते। अगर वे लोग इसे देख लेंगे तो हम चीनवासियों के लिए कितनी बदनामी की बात होगी?” “इन लोगों ने बहुत सारा काम खत्म कर लिया हे।” फिर भी सुन का आग्रह था, “इसे फौरन भरवा दीजिए। व्यापक हितों को आंशिक हितों पर प्राथमिकता मिलनी ही चाहिए। चलिए, अब चलकर घर देख लिया जाए।” वह घर की ओर बढ़ ही रहा




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