मनमानी के मजे | MANMAANI KE MAZE

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सर्गेई मिखालोव - SERGEI MIKHAIKOV

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उन्होंने भी वैसा ही किया और वहाँ बस्तों का बेकार बोझ हल्का करते हुए वे भी सूने स्कूल के बाहर निकल पड़े। 'दूध के दाँत' नामक दुकान पर आइसक्रीम साफ करते बच्चों का मेला लगा हुआ था। 'दूध-दाँतों' ने मिनटों में ही तमाम टेबिल-कुर्सियाँ हथिया ली थीं और कई तो खिड़कियों पर और फर्श तक में जमे हुए थे। अंदाज लगाना मुश्किल है कि एक “दूध-दाँत” अगर उसे रोका न जाए तो एक बार में, रस भरी, आम, अन्ननास, सनन्‍्तरे या मीठे नींबू की कितनी आइसक्रीम खा सकता है। वे छोटी प्लेटों में रखकर या स्टील के छोटे चम्मचों से नहीं खा रहे थे, न बाँस या गत्ते के चम्मचों से। वे आइसक्रीम, सूप वाली बड़ी-बड़ी प्लेटों में उँड़ेलकर बड़ी-बड़ी करछुलों से सूत रहे थे। मुँह में रखकर वे उसके घुलने का इन्तजार नहीं करते थे बल्कि उसे गुटक रहे थे। हालत यह हुई कि उनके गले बैठने लगे। गुबरेले की तो आवाज ही निकलना बन्द हो गई। अपनी प्लेट निबटाकर वे फिर कतार में लग जाते। आइसक्रीम के टूटे कतरे पैरों तले कुचले जा रहे थे, किसी को उनकी परवाह नहीं थी। “मैं अब और नहीं खा सकती, मुझे लगता है जैसे बर्फ हो गई हूँ।” नीलू ने भर्राए गले से कहा। उसकी नाक नीली हो रही थी और आँखों की तरैयाँ भर आई थीं। “बचा-खुचा हम अपने साथ ले जाएँ तो कैसा रहेगा?” गोलू ने सुझाव दिया। वह भी चाकलेट आइसक्रीम की दसवीं प्लेट खाने के बाद थरथरा रहा था। लेकिन उसकी बात पूरी हो कि कहीं से फलवाली गुलाबी आइसक्रीम का एक लोंदा उसकी नाक में आकर लगा और सामने टेबल पर फैल गया। दूसरा लोंदा नीलू की नाक पर लगा। जुड़वाँ घूमे और उन्होंने देखा कि “नाककानगला” लोगों ने आइसक्रीम गेंदों का खेल शुरू कर दिया था। गुबरेलों ने दूसरे कोनों से जवाब देना शुरू किया। गोलू और नीलू अगर तेजी से सरक न लेते तो चाहे-अनचाहे उन्हें भी इस लड़ाई में शामिल होना पड़ता। जब वे सड़क पर पहुँचे तो घंटाघर की घड़ी मनमानी के मजे के पहले दिन की मनमानी के मजे 16




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