जिस रात पलंग गिर गया | JIS RAAT PALANG GIR GAYA

JIS RAAT PALANG GIR GAYA by जेम्स थर्बर -JAMES THURBERपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारत ज्ञान विज्ञान समिति इस असंभव -सी लगने वाली घटना का माहौल बनाने के लिए जरूरी है कि फर्नीचर को यहां - वहां फेंका जाए, दरवाजे खड़काए जाएं, क॒त्ते की तरह भोंका जाए “ पलंग क्‍या गिरा कि घर में चीरब-चिल्लाहट शुरू हो गई, घर के लोग तरह-तरह की आशंकाओं से घिर गए और अफरा - तफरी मच गई। मां को लगा कि पिताजी परलोक सिधार गए। तनन्‍्मय को लगा कि उसका दम घुट रहा है '” पर असल में हुआ क्‍या था ? पढ़िए इस कहानी में।




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