विस्मृति यात्री | VISMIT YATRI
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
401
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अपनी द्राक्षाओंके लिये उद्यानकी ख्याति शायद इसीलिये नहीं हो सकी, क्योंकि
हमारे दुर्गम पर्व॑तोंके मीतरसे सूखी द्वात्मा ( मु॒क्का और किशमिश ) को बाहर
ले जाना मुश्किल है। हमारे उदुम्बर ( अंजीर ) और दूसरे भी फल कितने
मधुर होते हैं
भव्यमण्डलके मि्चु जब हमारे देशकी सदीके बारेमें सुनते, तो वुषार
( तुखार ) कहकर इधर आनेकी हिम्मत नहीं करते थे, पर जब्र मैं उनसे अपने
देशकी ज्ञीरवाहिनी नदियों और अ्रम्गृत-मधुर फलोंकी बात करता, तो उनके मनमें
उत्सुकता जरूर पैदा हो जाती। हमारे यहाँके मौसिमकी बातचीतसे उसका अनु-
भव आदमीकी कैसे हो सकता है ! उसी तरह, हमारे लोगों या इस छांग-आन्
महानगरीके लोगोंको भी पता नहीं लग सकता, कि वाराणसी और जेतवनमें
गर्मियोंमें भट्टी की जैसी घोर गर्मी होती है | मैं कहता, हमारे उद्यानके निवासी
तीनों ऋत॒श्नोंमें उसी तरह तीन गाँवमें बसते हैं, जिस तरह चक्रवत्ती राजा तीन
ऋतुओंमें तीन प्रकारके प्रासादोंमें रहा करते थे | जाड़ोंमें हम अपनी बढ़ी
नदियोंके निचले भागोंमें जाकर रहते, कभी-कभी उन जन्जलोंमें भी शरण लेते,
जहाँ पत्ते बराबर हरे रहते, बफ कभी नहीं पड़ती। वसनन््तके आगमनके साथ
जब बर्फ पिघल जाती, हमारे खेत नंगे हो जाते और सदा हरित न रहनेवाले
बच्तों और वनस्पतियोंमें पत्तियाँ कलियोंके रूपमें फूट निकलतीं, तो हम अपने
पहाड़के ऊपरी गाँवोंमें चले आते | मुके तो सबसे सुन्दर ओर प्यारे उद्यानके
वह पयार ( अधित्यकायें ) लगते हैं, जो उत्तुंग पर्वतोंकी पीठपर दूर तक फैले हैं ।
वहाँ बर्फ और भी पीछे पिघलती, जब कि वर्षा शुरू होती। इन पयारोंके
शुरू होनेसे पहले ही बड़े-बड़े बच्तोंकी भूमि खतम हो जाती और केवल घास
दही घास दिखाई पड़ती | ऐसी लम्बी-लम्बी घासें, जिनमें हमारी भेड़-बकरियाँ
ही नहीं, बल्कि गायें भी छिप जातीं। और कितनी पृष्थ्किर ये धासे होती हैं !
मैंने तो वैसा होते नहों देखा, लेकिन घुना जरूर है, कि इनके खानेसे भेड़ें इतनी
मोटी हो जाती हैं, कि उनका शरीर चमड़ेके भीतर नहीं समाता, और वह मध्य-
मण्डलकी पकी ककड़ीकी तरह फूट जाती हैं ।
आन नल
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