विज्ञान यात्रा - रूचि राम साहनी | RUCHIRAM SAHNI - VIGYAN YATRA

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नरेन्द्र सहगल - NARENDRA SAHGAL

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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सुबोध महंती -SUBODH MAHANTI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एर्चिय श्र्शा में रसायन विज्ञान और भौतिक विज्ञान के सहायक प्रोफेसर बन गये। यहीं से वह 5 अप्रैल 1918 को रसायन विज्ञान के वरिष्ठ प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हुए प्रो . साहनी ने अपना वैज्ञानिक जीवन आधुनिक भारत के इतिहास के एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण दौर में प्रांरर किया। उस समय यानी उननीसवीं शताब्दी के अंतिम चतुर्थाश में एक व्यापक बौद्धिक पुनर्जागरण पनप रहा था। देश में राजनीतिक चेतना और राष्ट्रीयता की भावनाएं जडें जमा रहीं थी। साथ ही यह काल ब्रिटिश साम्राज्यवाद का स्वर्णयुग भी था। आज हम भारत में विज्ञान का जो रूप देखते हैं, वह उन दिनों प्रारंभिक अवस्था में था। बौद्धिक स्तर पर आधुनिक वैज्ञानिक ज्ञान और वैज्ञानिक चेतना भारतीय संस्कृति में घुल-मिल्र रही थी, परंतु आधुनिक विज्ञान के विकास में भारतीयों की सक्रिय भागीदारी लगभग नगण्य थी। प्रो. साहनी उन भारतीय वैज्ञानिकों की पहली पीढ़ी में थे , जिनके कार्यों ने. देश में आधुनिक विज्ञान की परंपरा की स्थापना की। सन्‌ 1885 में जगदीश चंद्र बोस (1858-1937) ने कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में कार्यभार संभाला। सन्‌ 1888 में प्रफुल्ल चंद्र राय (1861-1944) एडिनबर्ग से भारत वापस आये और अगले वर्ष प्रेसिडेंसी कॉलेज में अस्थायी सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हुए। सन्‌ 1887 में महेन्द्र लाल सरकार ने द इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस की स्थापना की। वैज्ञानिक अनुसंधान को संस्थानात्मक आधार देने का यह संभवतया पहला भारतीय प्रयास था। परंतु उनन्‍नीसवीं शताब्दी के अंत तक इसकी गतिविधियां मुख्य रूप से भौतिकी और रसायन विज्ञान के क्षेत्र में लोकप्रिय व्याख्यानों का आयोजन करने तक सीमित रहीं । सन्‌ 1907 में चन्द्रशेखर वेंकट रामन इस




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