आँखों की चमक | AANKHON KI CHAMAK

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पेड़ लगाना, सफाई रखना जैसे बुनियादी हुनर भूल रहा है, तो हमें एक बार फिर इन कुशलताओं को स्कूली पढ़ाई का एक हिस्सा बनाना होगा। [] चूहों की कथा, बच्चों को व्यथा राबर्ट रोज़नथाल अमरीका में मनोविज्ञान के प्रोफेसर थे। उन्होंने दो शोध छात्रों को 5-5 चूहे दिए और उनसे चूहों को एक भूलभुलइया में से निकलना सिखाने को कहा। पहले छात्र से उन्होंने चुपके से कहा, “यह होशियार चूहे हैं। यह अवश्य सफल होंगे ।'' दूसरे छात्र के कान में उन्होंने फुसफुसाया, ““यह कमज़ोर दिमाग के चूहे हैं, फिर भी तुम कोशिश करो।'' यह अंतर केवल छात्रों के दिमाग में था। चूहे लगभग एक जैसे थे। परीक्षा वाले दिन 'होशियार' चूहे झटपट भूलभुलइया पार कर गए, जबकि 'कमज़ोर दिमाग' वाले चूहे अपनी जगह से हिले तक नहीं। इन आश्चर्यजनक परिणामों के बाद रोज़नथाल ने इस प्रयोग को एक स्कूल में दोहराया। मई 1964 में उनकी टीम सेन फ्रेंसिस्को शहर के एक गरीब प्राथमिक स्कूल में पहुंची। यहां गरीब मज़दूरों और अल्पसंख्यकों के बच्चे आते थे। रोजनथाल ने झूठमूठ कहा कि वह हावर्ड विश्वविद्यालय से आये हैं और यह शोध नेशनल साइंस फाउंडेशन के लिए कर रहे हैं। इतने बड़े नाम सुन कर गरीब स्कूल के शिक्षकों ने अपने स्वागत द्वार खोल दिए। 26 रोज़नथाल ने सभी बच्चों को एक स्टैंडर्ड आई.क्यू. टेस्ट दिया। इसके परिणाम उन्होंने शिक्षकों को नहीं बताए। बाद में हाज़िरी रजिस्टर को लेकर, बिना किसी आधार के उन्होंने हर तीसरे बच्चे को “मंद या कमज़ोर” और हरेक चौथे बच्चे को 'होशियार' करार दे दिया। अब वह हर चौथे महीने आते और बच्चों को एक स्टैंडर्ड आई.क्यू. टेस्ट देते। यह सिलसिला दो साल तक चला । इसके नतीज़ों ने सारी दुनिया को चौंका दिया। जो बच्चे शुरू में होशियार थे पर रोज़नथाल द्वारा कमज़ोर ' करार कर दिए गए थे, उनकी आई.क्यू. वास्तव में गिर गई थी। जो बच्चे दरअसल कमज़ोर थे पर रोज़नथाल द्वारा ' अक्लमंद ' करार करे गए थे उनकी आई.क्यू. पहले से कहीं अच्छी हो गई थी । शिक्षक इन बच्चों को अधिक प्रोत्साहन देने लगे थे, उनसे ज़्यादा प्रश्न पूछने लगे थे। इस प्रयोग में बस एक सबक है। अगर शिक्षक का विश्वास है कि बच्चा सफल होगा, तो वह बच्चा ज़रूर अच्छा करेगा। इसलिए बच्चे की सफलता में पूरा विश्वास रखें। यह सबसे सस्ता शैक्षिक सुधार होगा। [7




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