विचार बोध | VICHAR BODH

VICHAR BODH by केदारनाथ अग्रवाल -KEDARNATH AGRAWALपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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केदारनाथ अग्रवाल -KEDARNATH AGRAWAL

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लोक-जीवन से उद्भूत तुलसी की चेतना आज के संदर्भ में “मरकर भी नहीं मरे बाबा तुलसीदास' अपनी कविता की बदौलत जो चार सौ साल से बराबर जीती चली आ रही है और उन्हें भी आजतक अपने साथ जिलाये हुए है; यही सत्य इस बात का प्रमाण है कि यह कविता कालजयी है। कालजयी कविता में लिखी रामायण घर-घर में पढ़ी जाती है। अन्य किसी काव्य- ग्रन्थ का इतना प्रचार और प्रसार नहीं हुआ; जितना इसका हुआ है। मार्के की बात तो यह है कि समाज के सभी स्तरों को भेदकर यह जन-मानस में अत्यधिक गहरे प्रवेश कर गई है। कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं बचा, जो इसके प्रभुत्व और प्रभाव से अछूता रह गया हो। छोटा हो या बड़ा, विद्वान हो या मूढ़, दार्शनिक हो या दुनियादार, भक्त हो या ज्ञानी, रागी हो या विरागी, स्वामी हो या सेवक, राजधर्मी हो या प्रजाधर्मी, नैतिक हो या अनैतिक, निंदक हो या प्रशंसक, संत हो या असंत, कर्मी हो या अकर्मा, जहाँ जो है; वह इसे (रामायण को), अपने जीवन के किसी -न किसी छोर पर, सहारा या सम्बल के लिए उसी तरह पकड़े हुए है, जैसे हारिल (पक्षी) लकड़ी पकड़े रहता है। इसके बिना तो जैसे कोई आदमी जीता ही नहीं ! यह काव्य का ग्रन्थ न होकर जीवन का ग्रन्थ हो गया है। हिन्दी-भाषी क्षेत्र में तो इसे सार्वभौम प्रभुसत्ता प्राप्त है। अहिन्दी क्षेत्रों में भी इसे महती महत्ता मिली है। वहाँ भी इसका पारायण होता रहता है। देश से बाहर, विदेशों में भी इसके अनुवाद प्रस्तुत हुए हैं। यह विश्व की प्रमुख भाषाओं का ग्रन्थ बन गया है। इसी रामायण की, जब यह रची गई थी, तब दिद्वानों ने-साहित्य और संस्कृति के पुंगवों ने काव्य का ग्रन्थ मानने से इनकार कर दिया था। प्रशस्ति के बजाय इसे उनसे अपमान ही मिला था। आज युग और युग के लोग इसके प्रबल पक्षधर हो गये हैं और इसकी प्रशंसा करते नहीं अघाते। प्रशंसा कालिदास के 'रघुवंश' की भी होती है। उस महाकाव्य को काव्य के सुधी मर्मज्ञजन श्रेष्ठ महाकाव्य मानते हैं और कंठस्थ कर लेने पर अपने को धन्य समझते हैं। निस्संदेह उस ग्रन्थ की भी महती महत्ता है। लेकिन उसकी तुलना में भी रामायण बाजी




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