सडाको और कागज़ के पक्षी | SADAKO AND THE THOUSAND CRANES
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
18
श्रेणी :
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एलेअनोर कोवर - ELEANOR COERR
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जाऊंगी और फिर हवा की तरह से तेज़ दौड़ंगी।''
उस दिन के बाद से लगभग हरेक दिन डाक्टर नुमाटा सडाको को खून
चढ़ाते। “मुझे मालूम है कि तुम कष्ट में हो,'' वो कहते, “परंतु हमें अपना
भरसक प्रयास करना चाहिए।'
सडाको अपना सिर हिलाती। वह अपना दर्द कभी व्यक्त नहीं करती थी।
शायद एक बहुत गहरा दुख उसके भीतर पनप रहा था। वह था मृत्यु का भय।
बीमारी के साथ-साथ उसे इस डर से भी लड़ना था। सुनहरा पक्षी इस संघर्ष
में सहायक था। वह सडाको की उम्मीद जगाए रखता था!
मां अब अस्पताल में ज्यादा से ज्यादा समय बिताती थीं। अपनी मां के
चेहरे की चिंता देख सडाको का दिल दहल जाता था।
पेड़ों के पत्ते अब रंग बदलने लगे थे। अब आखिरी बार पूरा परिवार
सडाको से मिलने के लिए आया था। ईजी ने सडाको को एक डिब्बा दिया,
जो सुनहरे कागज़ में लिपटा था और लाल रिबन से बंधा था। हल्के-हल्के
सडाको ने डिब्बे को खोला। डिब्बे के अंदर सडाको के लिए एक सुंदर रेशम
का किमोनो था। उस पर चेरी के फूलों की कढ़ाई थी। मां ने कितने अरमानों
से उसे बनाया था। किमोनो देख कर सडाको रो पड़ी।
“तुमने यह क्यों बनाया?” उसने मुलायम रेशम को छूते हुए पूछा, मैं इसे
कभी पहन नहीं पाऊंगी और रेशम इतना मंहगा है।''
““सडाको, तुम्हारी मां ने कल सारी रात जाग कर इस किमोनो को पूरा
किया है। अपनी मां की खातिर एक बार इसे पहन लो, ' पिता ने कहा।
बड़ी कोशिश करने के बाद सडाको पलंग से उठ पाई। मां ने उसकी
किमोनो पहनाने में मदद कौ। सडाको खुश थी कि उसके फूले हुए पैर
किमोनो में छिप गए थे। सडाको एक-एक कदम हल्के-हल्के रखते हुए आगे
बढ़ी और खिड़की के पास पड़ी कुर्सी पर जाकर बैठ गई। सभी लोग कह रहे
थे कि रेशम के किमानो में सडाको एकदम राजकुमारी जैसी लग रही थी।
उसी समय चुज़ूको आ पहुंची। डाक्टर नुमाटा ने उसे कुछ देर मिलने की
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