उमरावनगर में कुछ दिन | UMRAONAGAR MEIN KUCH DIN
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
452 KB
कुल पष्ठ :
17
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक समूह - Pustak Samuh
No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh
श्रीलाल शुक्ल - Shrilal Shukl
No Information available about श्रीलाल शुक्ल - Shrilal Shukl
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)8/11/2016
इसका उन्होंने तुरंत कोई जवाब नहीं दिया। इक्केवाला बोला, 'इनके बापू शहर में बीमार पड़े हैं। उनका और कोई
नहीं है। स्वामी जी महाराज इन्हें वहाँ जाने नहीं देना चाहते।'
'जिलेदार साहब अभी जिंदा हैं?'
यह बेवकूफी भरा सवाल था। पर मेरे लिए एक बड़ा स्वाभाविक था। उनकी पुरानी कथाएँ, एक मल्लाह बेवा से
उनके नाते-रिश्ते सुनते-सुनते मैं उन्हें इतिहास पुरुष मान बैठा था।
फूलमती ने तमक कर कहा, 'जिंदा नहीं तो क्या मर गए?' आप यही चाहते हैं?
क्षमायाचना में मैंने सिर नीचा कर लिया। उन्होंने सहज बन कर कहा, 'बापू शहर में रहने त्रगे थ। मैं भी वहीं
पढ़ती थी। अम्मा उमरावनगर में ही रही। साल-भर बहुत बीमार रहीं। पेट में शूल उठा करता था, संग्रहणी, बुखार -
न जाने क्या-क्या? अब बाबू को भी यही रोग लगा है।'
कुछ कहना था, इसलिए पूछा, 'तो बापू की देखरेख के लिए जा रही हैं?
इस बार इक्केवाला भड़का, बोला, 'इन्हें जाना तो था ही। स्वामी जी महाराज इनकी जगह एक दूसरी सियादुलारी
ला रहे हैं। तुमने वहाँ देखा होगा बाबूजी, एक गोरी-गोरी चमकुल सी जनाना आगे बैठी रहती हैं। स्वामी जी अब
कहने लगे हैं कि 'सियादुलारी साँवले रंग की नहीं हो सकती।'
'तब स्वामी जी इन्हें जाने क्यों नहीं देना चाहते?'
'स्वामी जी हैं। अपनी लीला आप जानें।'
चौराहे के कुछ पहले ही मैं उतर गया। उतरते-उतरते पूछा, 'यहाँ कोई स्वामी जी का चेला मिला गया तो?'
'यहाँ मुझे डर नहीं है। राकेश भाई यहाँ पहले ही आ गए हैं।'
'राकेश भाई?'
'हमारी युवा पार्टी के अध्यक्ष है न जो, वही। आप नहीं जानते? बहुत बड़े युवा नेता हैं।'
चिड़ियाँ चहकने लगी थीं, पर किसी की भी चहक अब फूलमती-जैसी न थी। मैंने इक्के पर हाथ रख कर उसे
रोके रक््खा, मेरी सुनन जिज्ञासाएँ जाग उठी थीं।
'तो बापू के साथ रहते हुए आप राकेश भाई के साथ काम करेंगी?'
'पढूँगी और काम करूँगी। राकेश जी भाई कहते हैं, मैं बोल बहुत अच्छा लेती हूँ। पहाड़ों पर एक युवा-कैंप लगने
वाला है। राकेश भाई कहते हैं, वहाँ मुझे कैंप में अधातम पर लेक्चर देने होंगे।'
'काहे पर?'
'अधातम पर। भौतिक जगत निस्सार है न?'
उन्हें नमस्कार करके इक्के को आगे बढ़ जाने दिया। इच्छा हुई थी, एक बार आगाह करूँ, उस निस्सार भौतिक
जगत व्यवस्था के बारे में समझाऊँ जिसमें एक मल्लाह बेवा एक भद्रपुरुष का आसरा पा कर भी यतीम की तरह
शायद नासूर से बिना इलाज मरी है, जिसमें उसकी लड़की उससे भी ज्यादा भयानक एक सामाजिक नासूर का शिकार
हो रही है। पर उसका न समय था, न मेरी उस बात का कोई श्रोता ही था। फिर भी, अब कल रात की मेरी बातचीत
16क्17
User Reviews
No Reviews | Add Yours...