वांका | VANKA

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अन्तोन चेखव -ANTON CHEKOV

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नो वर्ष का वान्का झूकोव, जिसे तीन महीने पहले अल्याखिन मोची के यहाँ काम सीखने भेजा गया था, बडे दिन से पहले वाली रात को सोने नहीं गया। वह इन्तजार करता रहा और जब उसका मालिक और मालकिन तथा वहाँ काम करने वाले दूसरे लोग गिरजाघर चले गये, तब उसने मालिक की अलमारी से दावात और कलम निकाली, जिसकी निब में जंग लग गया था; उसने एक मुडा-मुडाया कागज का ताव निकाला, उसे फैला कर रखा और लिखने बेठ गया। पहला अक्षर बनाने के पहले उसने कई बार खिडकी और दरवाजे की तरफ सहमी आँखों से ताका, गहरे रंग के देवचित्र की ओर निहारा, जिसके दोनों ओर दूर तक जूतों के फर्मों से भरी शेल्फें थीं और काँपते हुए गहरी उसाँस ली। कागज बेंच पर फैला हुआ था और वान्का बेंच के पास फर्श पर घुटनों के बल खड़ा था। उसने लिखा, “प्यारे बाबा कोन्स्तान्तीन मकारिच! तो में तुम्हें चिट्ठी लिख रहा हूँ। मैं तुम्हें बडे दिन का सलाम भेजता हूँ और आशा करता हूँ कि ईश्वर तुम्हें सुखी रखेगा। मेरे बापू और मेरी अम्मा नहीं हैं और मेरे लिए बस तुम ही बाकी हो।”




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