शाह आलम कैम्प की रूहें | SHAH ALAM CAMP KI ROOHEN

Book Image : शाह आलम कैम्प की रूहें  - SHAH ALAM CAMP KI ROOHEN

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असग़र वजाहत - Asagar Wajahat

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/117॥2016 रूहों के बूढ़े को पागल रूह समझकर छोड़ दिया और वह कैम्प का चक्कर लगाने लगा। किसी ने बूढ़े से पूछा, 'बाबा तुम किसे तलाश कर रहे हो?' बूढ़े ने कहा, 'ऐसे लोगों को जो मेरी हत्या कर सके।' 'क्यों?' 'मुझे आज से पचास साल पहले गोली मार कर मार डाला गया था। अब मैं चाहता हूं कि दंगाई मुझे ज़िंदा जला कर मार डालें।' 'तुम ये क्‍यों करना चाहते हो बाबा?' 'सिर्फ ये बताने के लिए कि न उनके गोली मार कर मारने से मैं मरा था और न उनके ज़िंदा जला देने से मरूंगा।' शाह आलम कैम्प में एक रूह से किसी नेता ने पूछा 'तुम्हारे मां-बाप हैं?' 'मार दिया सबको।' 'भाई बहन?' 'नहीं हैं' 'कोई है' 'नहीं' 'यहां आराम से हो? 'हो हैं।' 'खाना-वाना मित्रता है?' 'हां मित्रता है।' 'कपड़े-वपड़े हैं?' 'हां हैं।' 'कुछ चाहिए तो नहीं,' ! कुछ नहीं |! 4/5




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