रोज़मर्रे की कहानियां | ROZMARRA KI KAHANIYAN

ROZMARRA KI KAHANIYAN by पुस्तक समूह - Pustak Samuhहोल्गेर पक्क - HOLGER PUKK

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होल्गेर पक्क - HOLGER PUKK

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नीरू अब हडबडी में है। वह सीधे घर की ओर दौड़ पड़ती है। हाँफती हुई , वह पुकारने लगती है - “दादी माँ, दादी माँ। स्कूल के अहाते में झाड़ियों के नीचे एक गुलचाँदनी खिली हुई है। दादी माँ मेहरबानी करके चलो और उसे देख आओ।” “ अरे, सचमुच? इतनी जल्दी?” दादी माँ चकित हैं। ४ आओ जल्दी चलें, दादी माँ! ” “मैं आ रही हूँ, बिटिया रानी। गुलचाँदनी का फूल तो मुझे देखना ही है। पूरे एक साल से देखा जो नहीं।” दादी ने अपने पाँव पर पड़े गरम ऊनी कम्बल को एक तरफ खिसकाया। और अब वे चल पड़ी हैं, नीरू अपनी दादी माँ का हाथ खींच रही है। दादी माँ जितना तेजु चल सकती हैं, चल रही हैं। आखिरकार वे स्कूल के अहाते में पहुँच गयीं। लेकिन वहाँ तो गुलचाँदनी फूल का कोई नामोनिशान तक नहीं। किसी ने उसे तोड़ लिया ... ४ ओह दादी माँ, अब तुम उसे देख भी नहीं पाओगी... वह इतना सुन्दर था! ” डर रोजमरेंकी कहानियां...




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