हरदीप और उसकी अंधविश्वासी माँ | HARDEEP AUR USKI ANDHVISHWASI MA - NBT

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भगवंत रसूलपुरी - BHAGWANT RASULPURI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आसपास घूम रही मक्खियां उसे सोने नहीं दे रहीं। उसकी सोच में अपना गांव और अपना घर घूम रहा है। उसका आधा गांव ऊंचे स्थान पर है। नीचे वाले हिस्से में काफी लोगों के कच्चे घर हैं | गांव के दाहिनी तरफ बाग है। गांव के पास ही नीचे वाले हिस्से की तरफ जोहड़ के पास हरदीप का कच्चा घर है। बाई तरफ ऊंचे स्थान पर बाबा लक्खी शाह का डेरा है। गरीबी के बावजूद उसने अपनी पढ़ाई जारी रखी है। स्कूल में वह मुश्किल से पांचवीं तक ही जा पाया था। किताबें खरीदने के लिए तथा अपने जेबखर्च के लिए बह खेतों में मेहनत-मजदूरी कर लेता है। या फिर अर्जुन मिस्त्री के साथ कस्बे में दिहाड़ी मजदूर का काम कर लेता है। इस तरह वह अपनी पढ़ाई का बोझ अपनी विधवा मां बंती के सिर पर नहीं पड़ने देता। लेटे-लेटे उसका ध्यान अमरूद के पेड़ की तरफ चला गया। उसे याद आता है...जब उसका बड़ा भाई नर्सरी से सफेदे के पौधे लेकर घर आया था तो उसने विरोध किया था, “देखो भाई साहब, इन सफेदों को लगाने से हमें घाटा होगा। अगर हम सभी अपने | आंगनों और खेतों में सफेदे ही लगाने लग गए तो हमारी धरती का पानी सूख जाएगा फिर एक समय ऐसा भी आएगा कि यहां सूखा पड़ने लगेगा। मैंने कहीं पढ़ा है कि सफेदे धरती से बहुत पानी खींच लेते हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार, एक सफेदे का पेड़ बीस कीकरों के पेड़ के बराबर पानी खींच लेता है। आप आंगन में फलदार पौधे लगाओ, छाया देने वाले पौधे लगाओ |” । उसके बड़े भाई ने हरदीप की बात मान ली और आंगन में दो अमरूद और एक शीशम का पौधा लगा दिया था। हरदीप ने यह बात गांव के लोगों को भी बताई थी। उसकी बात सुनकर लोग डर भी गए थे। इसी कारण गांव में कोई इक्का-दुक्का ही सफेदे का पेड़ दिखाई पड़ता धा। फिर उसके खयालों में लक्खी शाह का डेरा आया। यह डेरा जब गांव के ऊंचे स्थान पर बन रहा था तो इस गांव से जाकर विदेश में रहने वाले लोगों ने पैसे भेजने शुरू कर दिए । अपनी समझदारी से हरदीप ने कई लोगों के पैसे रुकवा दिए थे। फिर इन्हीं लोगों से पैसे मंगवाकर उसने गांव के स्कूल के कमरों की 9




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