जन आन्दोलन में विज्ञान की भूमिका | JAN ANDOLAN MEIN VIGYAN KI BHOOMIKA

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अनिल सदगोपाल - ANIL SADGOPAL

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इसकी तुलना में विज्ञान में यथार्थ का अवलोकन और विवेचन करने की प्रक्रिया कार्यकर्ता के मात्र वैज्ञानिक कौशल पर निर्भर करती है। उसकी वर्ग पृष्ठभूमि पर नहीं । * विज्ञान में सही अवलोकन और विवेचन करने की क्षमता प्रशिक्षण द्वारा विकसित की जा सकती है। परंतु समाज विज्ञान में यह हमेशा संभव नहीं होता क्योंकि बात निहित स्वार्थों के टकराव तक पहुंच जाती है। इस प्रकार समाज विज्ञान में कई ऐसे मुद्दे हैं जिनके कारण वैज्ञानिक पद्धति को लागू करने की सीमाए आ जाती हैं। क्‍ * वैज्ञानिक प्रक्रियाओं का उपयोग करने की क्षमताएं केवल शिक्षित व अभिजात तबके तक हड्डी सीमित नहीं हैं। अनपढ़ व शोषित लोगों में भी ये क्षमताएं होती हैं और प्रशिक्षण तथा अनुभव द्वारा उन्हें और आगे बढ़ाया जा सकता है। *» समाज के विकास के लिए सार्थक और उपयोगी योजनाएं तभी बन सकती हैं जब योजना बनाने वाले विशेषज्ञ शोषित लोगों के साथ जुटकर वैज्ञानिक पद्धति सीखेंगे। यदि ऐसा नहीं किया गया तो विकास तथा सामाजिक परिवर्तन के वर्तमान कार्यक्रमों और शोषित लोगों के जीवन के बीच की खाई कभी नहीं पटेगी। लेखक का मतलब यहां पर उन अनुसंधानों से है जिनका उद्देश्य प्राकृतिक विज्ञान के किसी विषय को गहराई से समझने के लिए उसके सिद्धांतों की खोज करना और ज्ञान बढ़ाना होता है। परंतु विज्ञान में एक और श्रेणी के अनुसंधान किए जाते हैं जिनका उद्देश्य यह खोजना होता है कि विज्ञान के सिद्धांतों और ज्ञान का उपयोग समाज की जरूरतों के लिए कैसे किया जाए। जैसे ही इस दूसरी श्रेणी के अनुसंधानों का सवाल उठता है वैसे ही वैज्ञानिक अध्ययन की दिशा और वस्तुनिष्ठता पर निहित स्वार्थों तथा वर्ग की पृष्ठभूमि का असर उसी तरह से झलकने लगता है जैसा कि हम समाज विज्ञान के क्षेत्र में देख चुके हैं। वैसे तो अब यह भी सवाल उठ रहा है कि प्राकृतिक विज्ञान के क्षेत्र में भी सैद्धांतिक शोध और ज्ञान सृजन की प्रक्रिया किस हद तक शोधकर्ता की वर्ग पृष्ठभूमि से स्वतंत्र है और निष्पक्ष कही जा सकती है। जन आंदोलन में विज्ञान की भूमिका किशोर भारती. 26 शिक्षा की परिभाषा इन परिकल्पनाओं से हमें जन आंदोलनों में विज्ञान की भूमिका समझने में मदद मिलती हैं। हमारी आज की समझ के अनुसार विज्ञान की प्रमुख भूमिका शोषित लोगों को अपने सामाजिक तथा आर्थिक यथार्थ को वैज्ञानिक पद्धति से समझने के लिए तैयार करने में है ताकि विकास और न्याय के लिए उनके संघर्ष ठोस आंकड़ों व ताकिक चिंतन पर आधारित हों। अतः वैज्ञानिक पद्धति को अधिक से अधिक लोगों तक ले जाने की प्रक्रिया ही सही शिक्षा है जिससे लोग अपने विकास के अवरोधों को पहचान सकें और न्याय के लिए अपने संघर्षों को और मजबूत कर पाएं यदि जन आंदोलन में विज्ञान की यह भूमिका और शैक्षणिक प्रक्रिया की यह परिभाषा मान ली जाए तो कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण और जन संगठन बनाने के लिए वैज्ञानिक पद्धति को व्यापक रूप से फैलाना जरूरी होगा। इस सैद्धांतिक समझ का व्यावहारिक रूप क्‍या होगा? इस दिशा में जो काम हुए हैं, उनसे क्या सीखा जा सकता हैं? शैक्षणिक प्रक्रिया को विकसित करने में क्या अवरोध आते हैं? इन सब प्रश्नों का उत्तर ढूंढने के लिए हमें पहले यह समझ लेना चाहिए कि वैज्ञानिक पद्धति के अलग-अलग तत्व क्‍या हैं। जिज्ञासा, अवलोकन, आंकड़ें इकट्डठे और व्यवस्थित करना, विवेचन करना और निष्कर्ष निकालना इत्यादि ये सब वैज्ञानिक पद्धति के ऐसे तत्व हैं जिनके आधार पर शैक्षणिक कार्यक्रम विकसित किए जा सकते हैं। आइए, इस बात को हम एक ठोस उदाहरण द्वारा समझें । गत वर्ष दिसंबर में हमने गांव में टी.बी. (क्षय रोग) की समस्या को लेकर एक युवा शिविर का आयोजन किया। शिविरार्थियों की कई टीमें बनाई गईं। इन टीमों ने कई दिनों तक अलग-अलग गांवों में जाकर टी.बी. रोग का सर्वेक्षण किया। उन्होंने पता लगाया कि प्रत्येक गांव में टी.बी. के “इस आलेख के प्रकाशन के बाद के अनुभव बताते हैं कि सामाजिक प्रश्नों के संदर्भ में वैज्ञानिक पद्धति की सीमा को विधिवत समझने की जरूरत है। शोघ और ज्ञान सृजन की अन्य पद्धतियों जैसे भावात्मक, इतिहास-बोध, सहज-बोध (इट्यूशन) आदि की भूमिका का महत्व समझना जरूरी है और इसके साथ वैज्ञानिक पद्धति का संतुलन स्थापित करना भी | जन आंदोलन में विज्ञान की भूमिका किशोर भारती. 27




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