हिंदी के विज्ञान लेखन के 100 वर्ष | 100 YEARS OF SCIENCE WRITING IN HINDIVIGYAN PRASAR
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
51 MB
कुल पष्ठ :
455
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
डॉ शिवगोपाल मिश्र - Dr. Shiv Gopal Mishra
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)10 हिन्दी में विज्ञान लेखन के सौ वर्ष
नियमानुसार दो बेर मुड़कर “न' नेत्र में पहुची। अतएव 'न' नेत्र को 'म' अपने स्थान में नहीं
किन्तु 'नइ' सिलसिले में “म” पर दिखाई देगी। अर्थात् त्रिपार्श्व में देखे जाने से , पदार्थ, उसकी
चोटी की तरफ, किरणों के वक्रीभवन से, बदले हुए दिखाई देते हैं। प्रकाश को दो बेर मोड़ देने का
यह गुण तालों के विषय में जो कुछ कहा जायगा, उसका आधार है।
ताल 6 प्रकार के होते हैं और उन्हें दो श्रेणियों में विभक्त कर सकते हैं। इनके गुणों के
विचार के लिए “अ” और “क* का ही विचार बस होगा, क्योंकि उस उस समूह के और और तालों
के गुण उनके ही सदृश हैं।
अ उभगोन्रनतोदर
इ समोन्रतोदर केन्द्राकर्षक
उ मध्यस्थूल अर्धचन्द्र
क उभयनतोदर
ख समनतोदर केन्द्राप्रसारक
ग मध्यकृश अर्धचन्द्र
उन्नतोदर ताल - यदि दो वृत्त एक दूसरे को काटें तो जो भूमि दोनों वृत्तों में समान होगी
वही उभयोनन्नतोदर ताल होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं। इन दोनों वृत्तों के केन्द्र, गुलाई के केन्द्र,
और उन दोनों केन्द्रों को जोड़ने वाली ताल में होकर जाने वाली रेखा प्रधान धुरी कहलाती है।
काचके दोनों किनारों से समान दूरी पर, प्रधान धुरी पर जो बिन्दु हो उसे दर्शन केन्द्र कहना उचित
होगा। ऐसी और कोई रेखा जो दर्शन केन्द्र में होकर जाय, किन्तु गुलाई के केन्द्रों से दूर रहे, उसे
गौण धुरी कहेंगें। प्रधान ध्री एक ही होती है: गौण ध्री अनन्त है। अनन्त सरल रेखाओं के मिलने
से वक्र रेखा व वृत्त बनता है। अतएव अ, इ, उ तालों को हम अनन्त त्रिपाश्वों के, एक के आधार
में दूसरे तथा दूसरे के आधार में तीसरे के, जुड़ने से बना हुआ मान सकते हैं। क.:ख,ग तालों को
इसके विरु चोटी की तरफ जुड़े हुए मान लें। अब यह समझना कठिन न होगा कि उन्नतोदर ताल
केन्द्राकर्षक क्यों होते हैं, और नतोदर केन्द्रापसारी क्यों होते हैं क्योंकि त्रिपाश्व में किरणें दो दफा
मुड़कर आधार की तरफ जाती हैं। उन्नतोदर में जुड़े अनन्त त्रिपाश्वों का आधार बीच की तरफ और
नतोदर में ऊपर की तरफ होता है। इसीलिए उन्नतोदर में किरणें बीच में आती हैं और नतोदर में
ऊपर की ओर उड़ जाती हैं।
(1) मान लीजिए कि किसी उन्नतोदर ताल पर बहुत दूर के पदार्थ की किरणें पड़ रही
हैं-इतनी दूर से कि वह एक स्थान से प्रचलित न दिखाई देकर समानान्तर दिखाई देती हों, जैसे
सूर्य की किरणें तो उन किरणों में से जो किरण प्रधान धुरी पर जाती है वह तो मानों समानान्तर
5 है.
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चित्र 5: क ख ताल, अ अंशुनाभि
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