मित्तो बकरी | MITTO BAKRI

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इसाक बाशेविस सिंगर - Isaac B. Singer

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लगे और कांव-कांव रटने लगे. वैसे तो सुबह का समय था, पर जल्द ही शाम जैसा अँधेरा छा गया. तभी ओले पड़ने लगे और कुछ ही देर में मुलायम सफ़ेद बर्फ गिरने लगी. अपनी बारह साल के उम्र में रुबिन ने तरह-तरह के मौसम देखे थे, पर इस तरह की तेज़ बर्फ़बारी उसने पहली बार ही अनुभव की थी. बर्फ इनती सघन थी कि उससे दिन की रोशनी पूरी तरह ढँक गयी थी. थोड़ी ही देर में, सामने का रास्ता पूरी तरह सफ़ेद बर्फ से ढँक गया. रुबिन अब पूरी तरह खो गया था. वो कहाँ था? अब उसे इसका कोई अंदाज़ नहीं था. बर्फीली हवा जैकेट चीरते हुए उसके कलेजे को हिला रही थी. बकरी मित्तो भी बारह साल की थी और वो सर्दी के मौसम से अच्छी तरह वाकिफ थी. पर अब उसके पैर भी मुलायम बर्फ में धंस रहे थे. तब उसने रुबिन की तरफ देखा, जैसे वो पूछ रही हो, “इस भयंकर तूफ़ान में भत्रा हमलोग बाहर क्‍या कर रहे हैं?” धीरे-धीरे बर्फ की परत और मोटी होती चली गयी. बर्फ के नीचे, रुबिन के जूते अभी भी खेत की जुती ज़मीन को महसूस कर पा रहे थे. उसे इतना ज़रूर पता था कि अब वो सड़क पर नहीं, बल्कि भटक गया था. पूरब-पश्चिम का, गाँव-शहर का, अब उसे कोई अंदाज़ नहीं था. हवा के तेज़ झोंके, सफ़ेद बर्फ को चारों तरफ उड़ा रहे थे. मित्तो अब एक जगह पर रुक गयी. उसके लिए अगला कदम रखना भी दुश्वार हो गया था. उसने आगे के अपने दोनों पैर ज़मीन में गठ़ा दिए और घर वापिस लौटने के लिए मिमियाने लगी. रुबिन खतरे को स्वीकार करने को अभी भी तैयार नहीं था. पर उसे इतना ज़रूर पता था - अगर उन्हें कोई आश्रय नहीं मिल्रा तो वे दोनों ठण्ड से जमकर जल्द ही मर जायेंगे. यह कोई मामूली तूफ़ान नहीं था. बर्फ की परत अब उसके घुटनों तक आ पहुंची थी. उसके हाथ सुनन्‍न हो गए थे और वो अपने पंजों को महसूस नहीं कर पा रहा था. मित्तों का मिमियाना अब रोने की आवाज़ में बदल गया था. जिन इंसानों पर उसने ऐतबार किया था वो आज उसे दोज़ख में धकेल रहे थे. रुबिन अब प्रार्थना करने लगा, “हे भगवान, मुझे और इस बेक़सूर बकरी को बचाओ!”




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