गीतांजलि | GITANJALI

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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किया दूर को निकट बंधु कहा भाई परायों को। जीवन और मरण मे, अखिल भुवन में जहां कहीं भी अपना लोगे जनम-जनम के जाने-अनजाने, तुम्हीं सबसे मुझे परिचित करा दोगे। तुम्हें जान लूँ तो न रहे कोई पराया न कोई मनाही, न कोई डर सारे रुपों में तुम हो जागे सदा दरस तुम्हारा प्रभु हो। किया दूर को निकट, बंधु कहा भाई परायों को। 4. बे विपदाओं से मुझे बचाना यह प्रार्थना नहीं मेरी। प्रार्थना है- विपदाओं में न होऊं भयभीत न ही दुखों में चित्त व्यथित हो भले ही न दो सांत्वना। दुखों पर पाऊं विजय मैं। संबल भले ही न जुटे पर, बल ना मेरा फिर भी टूटे। क्षति जो हो घटित जगत देता केवल वंचना अपने मन में न मानूं कोई क्षय। मुझे संकटों से बाहर निकालो यह प्रार्थना नहीं मेरी




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