दुष्यंत कुमार की 15 कवितायेँ | 15 POEMS OF DUSHYANT KUMAR

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दुष्यंत कुमार -DUSHYANT KUMAR

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कहाँ तो तय था चरागाँ हर एक घर के लिए कहाँ चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए| यहाँ दरख्तों के साए में धूप लगती है चलो यहाँ से चले और उम्र भर के लिए| न हो कमीज तो घुटनों से पेट ढक लेंगे ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए| खुदा नहीं न सही आदमी का ख्वाब सही कोई हसीन नजारा तो है नजर के लिए| वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता मैं बेकरार हूँ आवाज में असर के लिए| जिएँ तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिए| गांधीजी के जन्मदिन पर मैं फिर जनम लूँगा फिर मैं इसी जगह आऊँगा उचटती निगाहों की भीड़ में अभावों के बीच लोगों की क्षत-विक्षत पीठ सहलाऊँगा लँगड़ाकर चलते हुए पावों को कंधा दूँगा गिरी हुई पद-मर्दित पराजित विवशता को बाँहों में उठाऊँगा | इस समूह में




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