आख़िरकार मुक्त ! | FREE AT LAST

FREE AT LAST  by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaडेनियल ग्रीनबर्ग -DANIEL GREENBERG

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥॥ | सीखने में काफी कम समय और प्रयास लगाना पड़ता है हैं। लिखना बिलकुल भिन्न है हैं। कई बच्चे केवल लिखना ही नहीं, बल्कि अच्छी तरह से लिखना चाहते हैं। यह बात सौन्दर्यबोध की है हैं। सो वे किसी व्यक्ति के पास जाते हैं। ताकि लेखन की कला को बाकायदा सीख सकें। लिखना चित्रकारी की तरह होता है हैं, या कढ़ाई की तरह। लेखन को एक सौन्दर्य कौशल के रूप में देखना कई बार वास्तविक विषमताओं की ओर और ले जाता है हैं। नन्‍हें बच्चों को घण्टों-घण्टों तक सुन्दर लेखन सीखते देखना असामान्य बात नहीं है हैं। पर अजीब यह तब होता है हैं जब उनमें से आधे पढ़ना जानते ही नहीं हैं! “आप सुलेब सुलेख क्‍यों सीख रहे हो, अगर तुम पढ़ ही नहीं सकते?” मैंने अक्सर पूछा है हैं। क्योंकि यह सुन्दर है हैं,” जवाब मिलता है हैं। कुछ बच्चे हस्तलेखन को कला के रूप में सीखते हैं, और तब उसे भुला किसी दूसरे काम में लग जाते हैं। कुछ सालों बाद वे पढ़ना सीखते हैं, और तब फिर से लिखना सीखते हैं। अनुमान है कि यह दोहराए जाने लायक है हैं। सडबरी वैली में किसी बच्चों पर पढ़ना सीखने के लिए बाध्य, धकेला, उकसाया, फुसलाया या घूस नहीं दी गई हैं। हमारे यहाँ वाचनवैकल्य का एक भी मामला नहीं रहा है हैं। हमारे स्नातकों में एक भी दरअसल या कार्यात्मक रूप से निरक्षर नहीं रहा है हैं। कुछ आठ साल के, कुछ दस साल के और यदा-कदा बारह साल के बच्चे भी निरक्षर रहे हैं। पर जिस समय तक वे स्कूल छोड़ते हैं, उनमें अन्तर नहीं किया जा सकता। कोई भी जो हमारे बड़े बच्चों से मिलता है, यह अनुमान नहीं लगा सकता कि उन्होंने किस उम्र में पढ़ना या लिखना सीखा होगा। 6. मच्छी मारना हर साल जून के प्रारम्भ में जॉन स्कूल में अपने बच्चे के विषय में बातचीत करने आता। जॉन कोमल स्वभाव का बुद्धिमान व्यक्ति था जो स्कूल में अध्ययनरत अपने बेटे डैन को समर्थन देता था। पर जॉन चिन्तित भी था। बस ज़रा सा। इतना भर की साल में एक बार स्कूल में आश्वासन के लिए आए। उसकी बातचीत कुछ इस प्रकार चलती। जे.एफ.: “मैं स्कूल का दर्शन जानता हूँ, और उसे समझता हूँ। पर मुझे आपसे बात करनी है हैं। मैं चिन्तित हूँ। मैं: “समस्या क्‍या है?” (बेशक मैं जानता हूँ हम दोनों ही जानते हैं यह एक रिवाज़ भर हैं, क्योंकि हम हर साल वही बातें कहते हैं, पिछले पाँच सालों से लगातार |) जे. एफ.: “स्कूल में डैन दिन भर सिर्फ मछली पकड़ता है।” मैं: तो समस्या क्‍या है हैं? जे. एफ. : पूरे दिन, हर दिन, पतझड़, सर्दियाँ, बसन्‍्त।| वह केवल मछली ही पकड़ता है हैं। मैं उसे देखता हूँ और अगले वाक्य का इन्तज़ार करता हूँ। वह मेरा संकेत होगा। जे. एफ.: मुझे चिन्ता है कि वह कुछ भी नहीं सीखेगा। वह पाएगा कि वह बड़ा हो चुका है और उसे एक भी चीज़ आती न होगी।




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