देश बिराना | DESH BIRANA

DESH BIRANA by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaसूरज प्रकाश -SURAJ PRAKASH

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सूरज प्रकाश -SURAJ PRAKASH

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/23/2016 आज अखण्ड पाठ का आखिरी दिन है। पिछले तीन दिन से पूरे घर में गहठमागहमी है। पाठी बारी-बारी से आकर पाठ कर रहे हैं। बीच बीच में बेबे और दारजी की तसलली के लिए मैं भी पाठ करने बैठ जाता हूं। बेशक कई साल हो गये हैं दरबारजी के सामने बैठै, लेकिन एक बार बैठते ही सब कुछ याद आने लगा है। दारजी मेरे इस रूप को देख कर हैरान भी हैं और खुश भी। बेबे ने आस-पास के सारे रिश्तेदारों और जान-पहचान वालों को न्योता भेजा है। वैसे भी अब तक सारे शहर को ही खबर हो ही चुकी है। लंगर का इंतजाम कर लिया गया है। बेबे सब त्योहारों की भरपाई एक साथ ही कर देना चाहती है। मैंने बेबे को बीस हजार रुपये थमा दिये हैं ताकि वह अपनी साध पूरी कर सके। आखिर इस सारे इंतजाम में खरचा तो हो ही रहा है। उसकी खुशी में ही मेरी खुशी है। पहले तो बेबे इन पैसों को हाथ ही लगाने के लिए तैयार न हो लेकिन जब मैंने बहुत ज़ोर दिया कि तू ये सब मेरे लिए ही तो कर रही है तब उसने ले जाकर सारे पैसे दारजी को थमा दिये हैं। दारजी ने जब नोट गिने तो उनकी आंखें फटी रह गयी हैं। वैसे तो उन्होंने मेरे कपड़ों, सामान और उन लोगों के लिए लाये सामान से अंदाजा लगा ही लिया होगा कि मैं अब अच्छी खासी जगह पर पहुंच चुका हूं। बेबे से दारजी ने जरा नाराज़गी भरे लहजे में कहा है - लै तू रख अपणे पुत्त दी पैली कमाई। मैं की करणा इन्ने पैसेंया दा। मुझे खराब लगा है। एक तरफ तो वे मान रहे हैं कि उनके लिए ये मेरी पहली कमाई है और दूसरी तरफ उसकी तरफ ऐसी बेरुखी। बेबे बता रही थी कि आजकल दारजी का काम मंदा है। गोलू और बिल्लू मित्र कर तीन चार हजार भी नहीं लाते और उसमें से भी आधे तो अपने पास ही रख लेते हैं। अरदास हो गयी है और कड़ाह परसाद के बाद अब लोग लंगर के लिए बैठने लगे हैं। मुझे हर दूसरे मिनट किसी न किसी बुजुर्ग का पैरी पौना करने के लिए कहा जा रहा है। कोई दूर का फूफा लगता है तो कोई दूर का मामा ताया.... कोई बेबे को सुनाते हुए कह रहा है - नीं गुरनाम कोरे, हुण तेरा मुंडा दोबारा ना जा सके इहदा इंतजाम कर लै। कोई चंगी जई कुड़ी वेख के इननू रोकण दा पक्का इंतजाम कर लै, तो कोई जा के दारजी को चोक दे रहा है - ओये हरनामेया... इक कम्म तां तू ऐ कर कि इन्नू अज ही अज इन्नू इत्थे ई रोकण दा इंतजाम कर लै। दारजी को मैं पहली बार हंसते हुए देख रहा हूं - फिकर ना करो बादशाहो ... दीपू नूं रोकण दा अज ही अज पक्का इंतजाम है। मुझे समझ में नहीं आ रहा कि ये सब हो क्या रहा है। मुझे रोकने वाली बात समझ में नहीं आ रही। मुझे लग रहा है कि इस अखण्ड पाठ के ज़रिये कोई और ही खिचड़ी पक रही है। तभी बेबे एक बुजुर्ग सरदारजी को लेकर मेरे पास आयी है और बहुत ही खुश हो कर बता रही है - सत श्री अकाल कर इनन्‍्ना नूं पुत्तर। अज दा दिन साडे लई किन्‍ना चंगा ऐ कि घर बैठे दीपू लई इनना सोणा रिश्ता आया ए..। मैं ते कैनी आं भरा जी, तुसी इक अध दिन इच दीपे नूं वी कुड़ी विखाण दा इंतजाम कर ई देओ। -जो हुकम भैणजी, तुसी जदो कओ, असी त्यार हां। बाकी साडा दीपू वल के आ गया ए, इस्तों वड्‌डी खुशी साडे लई होर की हो सकदी है। - ये मैं क्‍या सुन रहा हूं। ये कुड़ी दिखाने का क्या चक्कर है भई। बेबे या दारजी इस समय सातवें आसमान पर हैं, उन्हें वहां से न तो उतारना संभव है और न उचित ही। पता तो चले, कौन हैं ये बुजुर्ग और कौन है इसकी लड़की | . कमाल है .. ..मुझसे पूछा न भाला, मेरी सगाई की तैयारियां भी कर लीं। अभी तो मुझे यहां आये चौथा दिन ही हुआ है और इन्होंने अभी से मुझे नकेल डालनी शुरू की दी। कम से कम मुझसे पूछ तो लेते कि मेरी भी कया मर्जी है। कुछ न कुछ करना होगा.. जल्दी ही, ताकि वक्‍त रहते बात आगे बढ़ने से पहले ही संभाली जा सके। 1624




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