नन्हे मुन्नों के लिए भौतिकी | NANHE-MUNNO KE LIYE BHAUTIKI

Book Image : नन्हे मुन्नों के लिए भौतिकी  - NANHE-MUNNO KE LIYE BHAUTIKI

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एल० सिकारुक - L. SIKARUK

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-कम्पन धागे के रास्ते मेरी डिब्बी तक पहुँचता है और उसके तले को कंपा देता है छैरसले फिर आवाज पैदा हो जाती है। द ; - बिल्कुल ठीक कह रहे हो। अच्छा , अब यह बताओ ,* जब हम माचिस के टेलीफोन व छिला बात कर रहे होते हैं तो मेरी आवाज तुम्हारे कान तक कैसे पहुंचती है? धागा तो है कहीं , फिर कौन सी चीज कांपती है! बच्चे सोचने लगे। थोड़ी देर बाद गीता बोली: -अरे, हां। वह तो हवा कांपती है। आप अपनी उंगलियां गले पर रख दीजिये न। -मेकेनिक ने ऐसा क्या। - अब आप बोलिये- ' आ-्ओआ । - आ-आजनआ , - मेकेनिक बोला। - देखा, कैसे गला कांप रहा है! हां ' -बस , यही बात है। जब हम बोलते हैं, हमारा गला कांपता है, उससे आस-पास की छा कांपने लगती है। इसके कारण हवा में वैसी ही लहरें उठती हैं, जैसी कि पानी में। बन्‍्तर केवल इतना है कि यह लहरें दिखाई नहीं देतीं, पर सुनाई जरूर देती हैं। .. उन ज्ञाबाश ! - मेकेनिक बोला और उसने हंसते हुए बच्चों से विदा ली। छुस मी इस प्रकार धागे तथा माचिस की ह््न्बियों से टेलीफोन बना सकते हो। 11)




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