मेरी प्रिय कहानियाँ | MERI PRIYA KAHANIYAN

MERI PRIYA KAHANIYAN by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaविष्णु प्रभाकर - Vishnu Prabhakar

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विष्णु प्रभाकर - Vishnu Prabhakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धरती भव भी घूम रही है. ६७ प्रभी सात महीने शेप थे ** नीना ने सहसा दोनों हाथो से प्रपनः मुंह भीच लिया | उसकी घुदवी विवलमे थाली थी | उसने मन ही मन विध्ठल-विक ले होकर बढ़ा, पिताजी प्रय नही सहा जाता। भ्रव नहीं सहा जाता। मौसा तुम्हारे कमल वो दीदते हैं । पितामी, तुप भा जाधों । भव हम उस स्इल से नहों पढ़ेंगे। झाय हम दड़िया कपड़े सद्दी पहनेंगे | विनाजी, तुमने रिए्दत सी थी ते देने बयों नहीं * गये क्यो ** हंस प्रहार सोचते-सोचते उसकी अन्दर भायो थे भन्घकार में पिता की मूति भौर भी दिय्याल हो उठी' एक प्रधेड ब्यहितर छो मूति, जिसकी प्रांसो में प्यार पा, शिसकी धाणी में मिठास थी, जिसने दोनो दरूचीं को नये सटूल में भर्ती करवा रता या; नहीं उन्हें कोई मारता-मिदवता नही! था, जहों बावता मिलता पा, जहां ये तस्वोरें काटे थे, रिलौने बनाते पे ** झौर धर में पिता उत के लिए साना बनाता था, पघ्रच्छटी-प्रष्छी बिताई साता पा, फल साता था। उनको माांके मरने पर उसने हसरों शादी तक नहीं की थी ** मीना ने ये सद बाते पड़े सियों के मुद् मुती । ये सब उमदे दिता दी पह़ो सारोफ रूरते | उसने भपने दोनों से पिता हो रह शहते सुता था कि रिपेशत लेता पाप है। सेदिन छिर उन्हीने रिप्दत छीबरों सौ *** पग्रातिर बयो***? पशेमसित बहती, “उसका शाप बहुत था, घोर धापदनों कम । श7 रुष्चों व) धच्छी शिक्षा दिसाना भाहा पा, धौर शुप जानो एच्छों शिवा बटर महंगी है'** महंगी ***रहगों पो तो एसने रिश्श्त की। मह दो हीठा करा होगा है ** घोर घर पिवा ढं से एटेगे ? मोटा बहले थे, “शरण शो रिष्वद्र देते तो एट जातें। एव जय ने तोन ट्शार लेकर एवं शाब बो छोड़ दिएा था एड धाइमी जिसने एक घोरत वो शझार दाता दा, उसे भी छर ने छोर दिशा दथा। पौप हडाए लिए छे ० दांत हरार दिफने होडे है? शो *हरपप*५-




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