आखिर क्यों | AAKHIR KYOON

AAKHIR KYOON by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaविष्णु प्रभाकर - Vishnu Prabhakar

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विष्णु प्रभाकर - Vishnu Prabhakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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केचुओ की तरह रेग रहे हो। मुनता हू, केंचुए बहुत बढ़िया किस्म को खाद वनात ह ! मे ता . नहीं शायद में भूली, में शायद तब खाद बनकर ही रह गई थी-- बढिया किस्म का खाद, जिसमे बदबु नहीं उलंती। काश, मुझमें से बटबू उठ सकती। प्यारे दोस्त! एक दिन सचमुच मेने अपने-आपको एक छोटे-से खुशहाल देहात मे पाया। वहा स्प्री-पुरुष सब मिलकर खेती करते थे और फिर हीर-राझा के गीत गाते थे। कितनी मस्ती थी उस आलम में। बहा की सुहानी धूप तक हमसे लिपट-लिपट जाती थी। बचपन में मां-बाप के साथ ऐसे ही देहातों में रहते हुए मेने न जाने कितने सतरगे सपने देखे थ, इसलिए बहुत देर तक में उस बातावरण से अछूती न रह सकी। बयार की मादकता ने मे उभारों को फिर से आकर्षक बना दिया। मैंने निश्चय किया था कि अब में किसी को अपने पास नहीं आने दूगी। लेकिन पास आने या न आने देने वाला कोई 'मै' थोड़े ही होता है! वह तो एक गध होती है। नर-नारी के सबंधों की गध जो किसी एक के अगों से फूटती है और किसी दूसरे के अंगों को खींच लेती है। फारुखी इस स्वाभाविक आकर्षण को न जाने क्या-क्या नाम दिया करता था, पर मुजफ्फर था कि भाषा से नितांत अपरिचित था। उसकी आखो की शरारत, उसके होठों की मुसकान ओर बाहों की जकडन इतनी मासल थी कि लोथ में भी चाह पैदा कर देती थी। इसका जो परिणाम हो सकता था वही हुआ-नारी फिर मां खनी। इस बार दो जुडवा बच्चों की मा। नियति का व्यग्य कितना क्रूर होता है। और मेरे पांच बेटे थे अब। कुती के भी पांच बेटे माने गए हैं। छठे को, जो उसका पहला था, उसने स्वयं त्याग दिया था। मेरा भी छठा बेटा है, मेरे प्रेम का प्रतीक पर वही मुझसे छीन लिया गया। आपको नाम तो बताए नहीं उनके। आवश्यक नहीं है पर बिना नाम यहां कुछ नहीं चलता तो, मान लीजिए, तब उनके नाम थे-- अनवर, अशरफ, असगर, अहमद ओर अली। आप पूछेंगे, 'छठे बेटे का नाम क्यों नहीं बताया!' जब बह मेरा रहा ही नहीं तब नाम लेकर क्या करूंगी? फिर भी उसका नाम है- आशिम। तो मरे दोस्त! मेरी जिंदगी का चक्र इस तरह तेजी से घूम रहा था। उन गांव वालो की दृष्टि मे मै पाच बेटों की मा थी, बेहद खुशकिस्मत और सुखी भी। मुजफ्फर को मेर निगोड़े रूप का जादू पागल बनाए हुए था। लेकिन यह कोई नहीं जानता था कि इस सुख ओर सौदर्य को भोगने वाली मात्र एक जीवित लाश, संस्कार और सभ्यता के आवरण से मुक्त एक कठपुतली है, जो न जाने कौन-सी नियति के इशारे पर यह सब कुछ करने को घिवश थी! इसके पीछे नर-नारी के शाश्वत संबंध थे या वे खतरनाक परिस्थितियां थी जिनमे में अपने बावजूद उलझती जा रही थी। और स्वामित्व जताने वाले हर पुरुष को मै प्यार करने का नाटक करती थी। लेकिन नाटक करने की भी एक सीमा होती है। मे जैसे -/”- 16 / आखिर क्यों <)<)




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