राजस्थानी रनिवास | RAJASTHANI RANIVAS

RAJASTHANI RANIVAS by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaराहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ड् १० राजस्थादी रनिंवास है, कि इस प्रकार धरती पर मत्था टेककर प्रणाम करने को नेपाकी भाषा मे भी डोकना कहा जाता है। ससुर भी तो आखिर देवता है, इसलिए कपडे में लिपटी बहू उसके सामने भी ढोकना करती है। सास के लिए प्रणाम हैँ सामने बैठकर हाथ जोड लेना । लौडियो में बडी-बूढियो के प्रति सम्मान प्रकट करना आवश्यक समझा जाता था, और बह मुसलमानी जमाने के अवशेष के तौर पर मुट्ठी बाधकर दोनो हाथो को अपने गाल में लगा वारना लेती, जिसे हम पुस्तकों में बारी जाऊँ के रूप में पढते है। जवाब में ठाकुरानी बैठकर बूढी लौडी के सामने हाथ जोडती । छोटी छौडिया घूघट निकालकर पगे छागती, जिसका जवाब खाली हाथ जोडकर दिया जाता। रानियो को ठाकुरानिया हाथ जोड झुककर मुजरा किया करती थी, लेकिन अब यह प्रथा सक्षिप्त कर दी गई है, और नमस्ते की तरह “खम्मा घणी” (क्षमा बहुत) कहकर हाथ जोड देना पर्याप्त समझा जाता है। सलमाडा के ठाकुर लोग अपने भाई-बन्दों से मिलते समय इष्ट देवता के अनुसार जे गोपीनाथजी की ज॑ रुगनाथजी की” करते है । शाम-सुबह की इस तरह की प्रणामापाती को *रामाशामा' कह्ल जाता है। शाम के वक्‍त जब ठाकुर साहब गद्दी पर बठे होते है, और नौकर मशाल बालकर वहा लाता है, तो दरबारी लोग ठाकुर साहब को मुजरा करते हे । भोजन-विभाग की जिम्मेवारी रानी और ठाकुरानी को नही है, क्योकि उन्हे खाता खाने भर से ही वास्ता है । ठाकुरो और राजाओ के यहा भीतर और बाहर दो रसोईधर होते हे । भीतर अन्त.पुर मे दारोगन (खवासिन ) या ब्राह्मणी स्त्री भोजन बनाती है, और बाहर बावर्ची | पहले बारी छोग बाहर के बावर्ची होते थे, पीछे मुसलमान रसोइए भी रक्‍्खे जाने रूगे । ठाकुरों के भीतरी-बाहरी दोनो रसोईघरो में दोनो ही वक्‍त सास' का बनना आवश्यक है | सलमिया लोग जगली सूअर को स्वेच्छापूर्वक त्याग चुके है, किन्तु औरो के यहा शूकर-मास बहुत बढिया माना जाता है। बकरी-भेड के अतिरिक्त शिकार से मिले हरिन, खरगोश, तीतर, बटेर, तिलोर आदि के मास बना करते है । दोनो वक्‍त दो-तीन प्रकार का मास और पुलाव बनना साधारण सी बात है । मास-प्रेमियो के लिए मीठी चीज प्रिय नही रह जाती, इसलिए जरदा या हलवा जैसा कोई एक मीठा भोजन पर्याप्त समझा जाता है। हा, छ-सात प्रकार की सब्जिया जरूर बनती है। पूर्वी भारत में मास के साथ भात का मेल माना जाता है, लेकिन राजस्थान में गेहु-या बाजरे के रूखे फूल्के पर्याप्त समझे जाते हे । मगल या एकादशी आदि के दिनो में घर्मंभीरू ठाकुर या अन्त पुरिकाए मास खाना नहीं पसन्द करती । उस दिन दालबाटी,




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