मानसरोवर भाग 8 | MANSAROVAR PART 8 - MUNSHI
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
346
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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प्रेमचंद - Premchand
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साधोराय इस रहस्य को न समझ सका। बाप की इस बात में उसे निष्ठुरता की
झलक दिखाई पड़ी। बोला - मैं आपका लड़का हूँ। आपके लड़के की तरह रहूँगा।
आपके प्रेम और भक्ति की प्रेरणा मुझे यहाँ तक लाई है। मैं अपने घर में रहने
आया हूँ। अगर यह नहीं है तो मेरे लिए इसके सिवा और कोई उपाय नहीं है कि
मैं जितनी जल्दी हो सके, यहाँ से भाग जाऊँ। जिनका खून सफेद है, उनके बीच
रहना व्यर्थ है।
देवकी ने रोकर कहा - लल्लू, मैं तुम्हें अब न जाने दूँगी।
साधो की आँखें भर आई, पर मुस्करा कर बोला - मै तो तेरी थाली में खाऊँगा।
देवकी ने उसे ममता और प्रेम की दृष्टि से देखकर कहा - मैंने तो तुझे छाती से
दूध पिलाया है, तू मेरी थाली में खाएगा तो क्या? मेरा बेटा ही तो है, कोई और
तो नहीं हो गया!
साधो इन बातों को सुनकर मतवाला हो गया। इनमें इतना स्नेह, कितना
अपनापन था। बोला - माँ, आया तो मैं इसी इरादे से था कि अब कहीं न
जाऊँगा, लेकिन बिरादरी ने मेरे कारण यदि तुम्हें जाति-च्युत कर दिया तो मुझसे
न सहा जाएगा। मुझसे इन गँवारों का कोरा अभिमान न देखा जाएगा, इसलिए
इस वक्त मुझे जाने दो। जब मुझे अवसर मिला करेगा, तुम्हें देख जाया करूँगा।
तुम्हारा प्रेम मेरे चित्त से नहीं जा सकता। लेकिन यह असंभव है कि मैं इस
घर में रहूँ और अलग खाना खारऊँ, अलग बैठढूँ। इसके लिए मुझे क्षमा करना।
देवकी घर में से पानी लाई। साधो हाथ-मुँह धोने लगा। शिवगौरी ने माँ का
इशारा पाया तो डरते-डरते साधो के पास गई। साधो को आदरपूर्वक दंडवत की।
साधो ने पहले उन दोनों को आश्चर्य से देखा, फिर अपनी माँ को मुस्कराते
देखकर समझ गया। दोनों लड़कों को छाती से लगा लिया और तीनों भाई-बहन
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