तोत्तो -चान | TOTTOCHAN

TOTTOCHAN by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaतेत्सुको कुरोयांगी - TUTSUKO KUROYANGI

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तेत्सुको कुरोयांगी - TUTSUKO KUROYANGI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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10) तोत्ता-चान करेंगे और उसे उत्तर देने होंगे। पर जब उससे यह कहा गया कि वह किसी भी चीज के बारे में वोल सकती है तो उसे बड़ा अच्छा लगा। वह तुरंत वोलने लगी। उसने जो कुछ कहा, वह था तो काफी गड्टमह्ठ पर वह अपनी पूरी ताकत से वालती गयी। उसने हेडमास्टर जी को बताया कि जिस ट्रेन पर चढ़कर वे आये थे वह कितनी तेज चली थी; उसने बताया कि उसने टिकट वावू से कहा था कि वे उससे टिकट न लें पर उन्होंने उसकी बात नहीं मानी; उसने बताया कि उसके दूसरे स्कूल की शिक्षिका कितनी सुंदर है, अबावील का घोंसला कैसा है, उसका भूरा क॒त्ता रॉकी कैसे-कैसे करिश्मे दिखा सकता है; उसने वताया कि वह कैंची मुंह में डालकर चलाया करती थी, पर उसकी शिक्षिका ने उसे ऐसा करने से मना किया था, क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं तोत्तो-चान की जीभ न कट जाये, पर वह फिर भी वैसा करती रही; उसने बताया कि वह नाक कैसे सिनक लेती है, क्योंकि उसकी बहती नाक अगर मां देख लेती है तो उसे डांट लगाती है; उसने वताया कि पापा कितने अच्छे तेराक हैं, और तो और वे गोता भी लगा सकते हैं। वह लगातार बोलती गई। हेडमास्टर जी कंभी हंसते, कभी सिर हिलाते और कहते, “अच्छा फिर ?” तीत्तो-चान इतनी खुश थीं कि चह आगे बोलती जाती। वोलते-बोलते आखिर उसके पास बोलने को कुछ भी नहीं वचा। अब उसका मुंह बंद था, पर वह अपने दिमाग पर जोर डाल रही थी। सोच रही थी कि आगे क्‍या कहे ? “मुझ और कुछ बताने को तुम्हारे पास क्या कुछ भी नहीं है ?” हेडमास्टर जी न पूछा। द से में चुप रहना कितने शर्म की वात है, तोत्तो-चान ने सोचा। कितना अच्छा मौका है। क्या वह किसी भी चीज के वारे में और कुछ भी नहीं बता सकती ? उसने मन ही मन सोचा। अचानक उसे कुछ सूझा। हां, वह अपनी फ्रॉक के वारे में वतायेगी जो उसने पहन रखी थी। वैसे उसके ज्यादातर कपड़े मां खुद ही सीती थी, पर यह फ्रॉक दुकान से खरीदी हुई थी। जब भी वह दोपहर के वाद स्कूल से घर लौटती थी तो अकसर उसके कपड़े फटे होते थे। मां को समझ ही न आता कि वे ऐसे कैसे फटे होंगे। उसकी सुंदर सफेद सूती चट्टियां भी कश्नी-कभी तार-तार हो जाती थीं। उसने हेडमास्टर को बताया कि ऐसा केसे हो जाता था। असल में उसके कपड़े इसलिए फटते थे क्‍योंकि वह दूसरों के व्यीचों में झाड़ियों के वीच में से घुसती थी। साथ ही, वह ख़ाली जमीन के चारों ओर लगे कंटीले तारों के नीचे से भी घुसती थी। इसलिए आज सुबह जब तैयार होने की वारी आई तो मां की सिली हुई सारी अच्छी फ्रॉकें फटी निकलीं >शरर उसे यह खरीदी हुई फ्रॉक पहननी पड़ी। फ्रॉक पर लाल और सलेटी रंग के चेक बने थे, कपड़ा जर्सी का है। इतनी बुरी भी नहीं है; पर मां को लगता है कि कालर पर कढ़े लाल फूल फूहड़ हैं। “मां को कालर पसंद नहीं है,” तोत्तो-चान ने कालर तोत्तो-चान 1] उठाकर हेडमास्टर जी को दिखाया। लेकिन इसके बाद खूब सोचने पर भी तोत्तो-चान को कुछ और न सूझा। उसे इस बात से: कुछ दुख हुआ। लेकिन तभी हेडमास्टर जी उठ खड़े हुए। उन्होंने अपना प्यार भरा बड़ा सा हाथ उसके सिर पर रखा और कहा, “अब तुम इस स्कूल की छात्रा हो”... ठीक ये ही शब्द थे उनके। और उस समय तोत्तो-चान को लगा कि वह जीवन में पहली बार किसी ऐसे व्यक्ति से मिली है जो उसे सच में अच्छा लगता हो। असल में इससे पहले किसी ने उसे इतनी देर बोलते नहीं सुना था। और तो और, उसे सुनते समय हेडमास्टर जी ने एक बार भी जम्हाई नहीं ली थी, न ही उनके चेहरे पर अरुचि का भाव आया था। शुरू से अंत तक उन्हें सुनना उतना ही अच्छा लगा था, जितना कि उसे बोलना। तोत्तो-चान को अभी समय देखना नहीं आता था। फिर भी उसे लगा मानो काफी समय बीत चुका हो। अगर उसे समय देखना आता होता-तो उसे जरूर और भी ज्यादा आश्चर्य होता और शायद तब वह हेडमास्टर जी के प्रति कहीं ज्यादा कृतज्ञ होती। क्योंकि, मां और तोत्तो-चान सुबह आठ बजे स्कूल पहुंची थीं, और जब वह बोलना बंद कर चुकी और हेडमास्टर ने उसे बताया कि अब वह इस स्कूल को छात्रा है, तब उन्होंने अपनी जेब से घड़ी निकाली और कहा “अरे, खाना खाने का समय हो गया।” यानी हेडमास्टर जी ने उसका बतियाना पूरे चार घंटे तक सुना होगा। इस दिन से पहले या उसके बाद किसी वयस्क ने तोत्तो-चान की बात इतने लंबे समय तक नहीं सुनी। और सच तो यह है कि उसकी मां, और पिछली शिक्षिका को यह जानकर भी आश्चर्य होता कि एक सात साल की लड़की लगातार चार घंटे बोलने का मसाला भी जुटा सकती है। उस वक्त तोत्तो-चान को यह तो पता था ही नहीं कि उसे स्कूल से निकाल दिया गया है और किसी को यह समझ नहीं आ रहा कि उसका किया क्‍या जाए । उसको स्वाभाविक खुशमिजाजी और भुलक्कड़पन के कारण वह भोली-भाली लगती थी। पर अंदर ही अंदर उसे यह तो लगता ही था कि उसे दूसरे बच्चों से कुछ अलग समझा जाता है, शायद कुछ अजीब भी। पर हेड़मास्टर जी के सामने वह अपने आपको सुरक्षित महसूस कर रही थी। वह बहुत खुश थी। वह हमेशा-हमेशा के लिए उनके ही साथ रहना चाहती थी। ये भावनाएं थीं तोत्तो-चान की उस पहले दिन हेडमास्टर सोसाकु कोबायाशी के बारे में। सौभाग्य से हेडमास्टर जी की भावनाएं भी उसके प्रति ठीक ऐसी ही थीं।




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