चीफ की दावत | CHIEF KI DAWAT
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
184 KB
कुल पष्ठ :
7
श्रेणी :
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भीष्म साहनी - Bhisham Sahni
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मां को देखते ही देसी अफसरों की कुछ स्त्रियां हंस दीं कि इतने में चीफ ने धीरे से कहा - पुअर डियर!
मां हडबडा के उठ बैठीं। सामने खडे लूतने लोगों को देखकर ऐसी घबराई कि कुछ कहते न बना। झट से पलला सिर पर
रखती हुई खडी हो गयीं और जमीन को देखने लगीं। उनके पांव लडख़डाने लगे और हाथों की उंगलियां थर-थर कांपने
लगीं।
मां, तुम जाके सो जाओ, तुम क्यों इतनी देर तक जाग रही थीं? - और खिसियायी हुई नजरों से शामनाथ चीफ के
मुंह की ओर देखने तगे।
चीफ के चेहरे पर मुस्कराहट थी। वह वहीं खडे-ख़डे बोले, “नमस्ते!” मां ने झिझकते हुए, अपने में सिमटते हुए दोनों हाथ
जोडे, मगर एक हाथ दुपट्टे के अन्दर माला को पकडे हुए था, दूसरा बाहर, ठीक तरह से नमस्ते भी न कर पाई। शामनाथ
इस पर भी खिन्न हो उठे।
इतने में चीफ ने अपना दायां हाथ, हाथ मिलाने के लिए मां के आगे किया। मां और भी घबरा उठीं।
मां, हाथ मिलाओ। पर हाथ कैसे मिलातीं? दायें हाथ में तो माला थी। घबराहट में मां ने बायां हाथ ही साहब के दायें
हाथ में रख दिया। शामनाथ दिल ही दिल में जल उठे। देसी अफसरों की स्त्रियां खिलखिलाकर हंस पडीं।
यूं नहीं, मां! तुम तो जानती हो, दायां हाथ मिलाया जाता है। दायां हाथ मिलाओ। मगर तब तक चीफ मां का बायां
हाथ ही बार-बार हिलाकर कह रहे थे - हाउ डू यू डृ?
कहों मां, मैं ठीक हूं, खैरियत से हूं। मां कुछ बडबडाई।
मां कहती हैं, मैं ठीक हूं। कहो मां, हाउ डू यू डू।
मां धीरे से सकुचाते हुए बोलीं - हो डू डू ..
एक बार फिर कहकहा उठा। वातावरण हल्का होने लगा। साहब ने स्थिति संभाल ली थी। लोग हंसने-चहकने लगे थे।
शामनाथ के मन का क्षोभ भी कुछ-कुछ कम होने लगा था।
साहब अपने हाथ में मां का हाथ अब भी पकडे हुए थे, और मां सिकुडी ज़ा रही थीं। साहब के मुंह से शराब की बू आ
रही थी।
शामनाथ अंग्रेजी में बोले - मेरी मां गांव की रहने वाली हैं। उमर भर गांव में रही हैं। इसलिए आपसे लजाती है। साहब
इस पर खुश नजर आए। बोले - सच? मुझे गांव के लोग बहुत पसन्द हैं, तब तो तुम्हारी मां गांव के गीत और नाच
भी जानती होंगी? चीफ खुशी से सिर हिलाते हुए मां को टिकटिकी बांधे देखने लगे।
मां, साहब कहते हैं, कोई गाना सुनाओ। कोई पुराना गीत तुम्हें तो कितने ही याद होंगे।
मां धीरे से बोली - मैं क्या गाऊंगी बेटा। मैंने कब गाया है?
वाह, मां! मेहमान का कहा भी कोई टालता है? साहब ने इतना रीझ से कहा है, नहीं गाओगी, तो साहब बुरा मानेंगे।
मैं क्या गाऊं, बेटा। मुझे क्या आता है? वाह! कोई बढिया टप्पे सुना दो। दो पत्तर अनारां दे ..
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