इवान | IVAN

IVAN by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaब्लादीमिर बोगोमोलोव - VLADIMIR BOGOMOLOV

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ब्लादीमिर बोगोमोलोव - VLADIMIR BOGOMOLOV

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कर देना ।” फिर लौटकर मैंने एक बाल्टी में थोड़ा ठण्डा पानी मिला दिया। जाकेट उतारकर लड़का टब में बैठकर नहाने लगा । उसके सामने मैं अपने आपको अपराधी अनुभव कर रहा था। जाहिर है, उसने मेरे सवालों के जवाब हिदायतों की वजह से नहीं दिये थे, और मैं था कि जो मुझे नहीं जानना था वही जानने की कोशिश में उस पर चिल्ला रहा था, उसे धमका रहा था। सभी को मालूम है कि गुप्तचरों के अपने रहस्य होते हैं, जिनके बारे में हेडक्वार्टर के बड़े अफसर तक नहीं जानते हैं। अब मैं आया की तरह उसकी देखभाल करने तक को तैयार था; यहाँ तक कि मैं खुद अपने हाथों से उसे नहलाना चाहता था, पर हिम्मत नहीं कर पाया : वह मेरी ओर नहीं देख रहा था । मुझ पर ध्यान न देकर वह ऐसा जता रहा था मानो उसके अलावा डग-आउट में कोई न हो । “लाओ, तुम्हारी पीठ साफ कर दूँ,” अनायास मैंने हिचकिचाकर कहा | “मैं खुद कर लूँगा!' उसने मेरी बात काटकर कहा | मुझे साफ तीलिया और उसके पहनने की सूती कमीज हाथ में लिये अँगीठी के पास खड़े रह जाना पड़ा । मैं देगचे में रखे शाम के खाने-गोश्त के साथ बाजरे की खिचड़ी-को जिसे मैंने अभी तक छुआ भी नहीं था चलाने लगा । नहाने के बाद वह सुनहरे बालोंवाला, गोरा-चिट्ठा लड़का निकला; बस चेहरा और हाथ ही कुछ सँवलाये हुए थे, हवा से या शायद धूप से । उसके कान छोटे-छोटे, गुलाबी, कोमल और, जैसा कि मुझे लगा, एक जैसे नहीं थे : दाहिना कान पीछे की ओर चिपका हुआ और बायाँ कुछ आगे की ओर निकला हुआ था। गालों की उभरी हुई हड्डियोंवाले उसके चेहरे पर बड़ी-बड़ी, आश्चर्यजनक हद तक एक-दूसरे से दूर कुछ कंजी सी आँखें देखने लायक थीं । मैंने शायद कभी किसी की आँखें एक दूसरे से इतनी दूर नहीं देखी थीं । उसने बदन पोंछकर सुखाया और मेरे हाथों से कमीज ले ली, जो अँगीठी के पास होने की वजह से गर्म हो गई थी । कमीज पहनकर उसने अच्छी तरह उसकी आस्तीनें चढ़ा लीं और मेज के पास बैठ गया। उसके चेहरे पर उदासी और सतर्कता का वह भाव अब दिखाई नहीं दे रहा था। वह थका-थका सा देख रहा था, उसकी मुद्रा कठोर और गम्भीर थी। मैंने सोचा था कि वह खाने परर एकदम टूट पड़ेगा, पर उसने कई बार चम्मच पकड़ा अनमनेपन से कुछ खाया और बर्तन परे खिसका दिया | फिर वह उसी तरह चुपचाप बिस्कुट और बेहद शक्कर मिली चाय का-जिसे अपने रसद में से देने में मैंने कंजूसी नहीं की थी-एक प्याला पीकर उठ गया और धीरे से कहा : “शुक्रिया ।” में इसी बीच टब बाहर ले जाकर पानी फेंक आया, जो ऊपर से साबुन के झाग की वजह से कुछ कम लेकिन नीचे से बहुत ही गन्दा था। फिर तकिये को हाथ से पीटकर एकसार करके बेंच पर रख दिया। लड़का मेरे बिस्तर पर चढ़ गया और दीवार की ओर मुँह करे हथेली को गाल के नीचे रखकर लेट 5 «०७ विकाहइवापाज




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