टॉफ़ी | TOFFEE

TOFFEE by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaलाल्टू -LALTU

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हे ५ ॥ ५ है! 1 में एक महीना-आमतौर से गर्मियों में-हम पंजाब जाते। वहां दादी मां देशी घी का पीपा तैयार रखती | साल भर में एक दस किलो का पीपा हम दोनों मिलकर . खत्म करते। दोपहर में आराम करने के बाद पिताजी ट्यूशन करने! निकलते | आमतौर से मैं घर पर ही खेलता रहता या उनकी दी हुई हिदायत के अनुसार पढ़ता-लिखता | कभी क्भार उनके साथ भी चल पड़ता। अब सोचता हूं तो लगता है कि कई बच्चों को वे मुफ्त पढ़ाते, पर कुछेक जगहों पर उन्हें दस रुपये के आस-पास महीने में मिलता । उनके साथ चलने पर वे पेड़-पौधों या रास्ते पर दिखती कई चीजों के बारे बतलाते | कभी-कभी पास के रेलवे स्टेशन तक मुझे ले जाते और रेलगाड़ी के बारे में समझाते। अवाक्‌ नेत्रों से मैं घुंआ छोड़ते उन दानवों को देखता और पिताजी भाष का इंजन और पिस्टन वगैरह के बारे में मुझे बतलाते । कभी-कभी कुछ बच्चे घर आकर उनसे पढ़ते। शाम होते ही वे चले जाते। शाम को पिताजी अक्सर दारू पी लेते और जरा जरा सी गलती पर मुझे पीटते। (6) ् सुकमा“ ं - ताक जि अऋ* मत 1 कभी-कभी पड़ोसी आकर मुझे छीन ले जाते और बाद में उनके पास मुझे सुला कि 5 जाते। अब सोचकर बड़ा आश्चर्य होता है कि उनके पीटने के बावजूद मुझे उन्हीं | के पास लेटने में सबसे अधिक सुरक्षा महसूस होती | दूसरे दिनों वे देर रात तक बैठ किताबें पढ़ते रहते। जि दिन की याद मुझे सबसे अधिक आती है, उस दिन भी उन्होंने दारू पी थी और खूब शोर मचाया था। उस दिन दोपहर को राजकिशोर नाम का एक लड़का घर पर पढ़ने आया था। गर्मी के दिन थे | राजकिशोर को सवाल करवाने में पिताजी परेशान हो रहे थे। अचानक बिजली चली गई॥ कमरे में एक पंखा था। डी.सी. करेंट से चलता। पंखा बंद हो जाने से उमस बढ़ गई और पिता | जी बार-बार गर्दन हिलाने लगे। एक बार उन्होंने कहा, बहुत गर्मी है...पंखा भी बंद हो गया,” उन्होंने पगड़ी भी उत्तारकर रख दी थी। राजकिशोर मुस्करा रहा था। पिताजी झल्ला उठे, हंसने की क्या बात है रे?'' वह बिना घबराए बोला,''हमारे घर तो पंख़ा है ही नहीं, सरजी/'' (7) >स७ १ हे ऐ ३ -- 1 जक। ९९ (के 2 ८4 ्- पे >+ खा 6 | पु हा | - के ॥. । 0) हा हो ही रब ४... आओ ज्चः है ॥ हा गा ५. (0 > का जद बा ४. .. मु]




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