मेरे मुँह में ख़ाक | MERE MUNH ME KHAAK

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मुस्ताक अहमद युसुफी -MUSHTAQ AHMED YUSUFI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/2/2016 के समय वुजू कराने की हर एक की बारी तय थी मगर आधी रात गए आवाज देकर सबकी नींद खराब नहीं करते थे। हौले से नब्ज छूकर बारी वाली को जगा देते थे और ऐसा कभी नहीं हुआ कि गलत नब्ज पर हाथ पड़ा हो। जालीनूस के पोते ने हमारी नब्ज, जुबान, जिगर, पेट, नाखून, पेशाब, पपोटे - सार-संक्षैप यह कि सिवाय कोहनी के हर चीज का मुआयना किया। फीस तय करने से पहले हमारी कार का इंजन भी स्टार्ट करवा के अपने चश्मे से देखा और फीस माफ कर दी। फिर भी एहतियातन पूछ लिया कि महीने की आखिरी तारीखों में आँखों के सामने तिरे-मिरे नाचते हैं? हमने सर हिल्राकर स्वीकार कर लिया तो मरज और उर्दू जुबान के मजे लूटते हुए बोले कि हाथ ठीक है, कोहनी पर जो दर्द है, दर्द में जो चपक है, चपक में जो टीस है, और टीस में जो कसक रह-रह कर महसूस होती है, वह गैस की है। बकौल मिर्जा, यह जाँच न थी, हमारी बीमारी की तौहीन थी। हमारे अपने रोगाणुओं के मुँह पर तमाचा था। चुनांचे यूनानी हकीमी से रहा-सहा भरोसा चौबीस घंटे के लिए बिल्कुल उठ गया। इन चौबीस घंटों में हमने कोहनी का हर कोण से एक्सरे कराया लेकिन इससे मायूसी और बढी। इसलिए कि कोहनी में कोई खराबी नहीं निकली पूरे दो महीने मरज में हिंदू योग आसन और मेथी के साग की बढ़ोत्तरी करने के बाद हमने मिर्जा से जाकर समस्या बताई। हमारा हाल सुनने के बाद दाईं कलाई पर दो उँगल्रियाँ रखकर उन्होंने नब्ज देखी। हमने हैरत से उनकी तरफ देखा तो बोले, 'चालीस साल बाद मर्द का दिल नीचे उतर आता है।' फिर बोले, 'तुम्हारा इल्लाज यह है कि फौरन बाइफोकल बनवा लो।' हमने कहा, 'मिर्जा! तुम तो शराब भी नहीं पीते। कोहनी का आँख से क्या संबंध? बोले, 'चार पाँच महीने से देख रहा हूँ कि तुम्हारी पास की नजर भी खराब हो गई है। किताब नजदीक हो तो तुम पढ़ नहीं सकते। उम्र का तकाजा ही कहना चाहिए। तुम अखबार और किताब को आँख से तीन फिट दूर बाएँ हाथ में पकड़ कर पढ़ते हो। इसी लिए हाथ के पुट्ठे अकड़ गए हैं। चुनांचे कोहनी में जो दर्द है, दर्द में जो...' माना कि मिर्जा हमारे साथी और हमदर्द हैं लेकिन उनके सामने बीमारी को खोलते हुए हमें हौल आता है। इसलिए कि अपने फकीरी चुटकुलों से असल मरज को तो जड़-बुनियाद से उखाड़ कर फेंक देते हैं, लेकिन तीन चार नए मरज गले पड़ जाते हैं, जिनके लिए फिर उन्हीं से सलाह लेना पड़ती है और वह हर बार अपने इलाज से हर मरज को चार से गुणा करते चले जाते हैं। इस ढंग से इलाज करने का फायदा यह है कि कुछ हिस्सा फायदे के बाद दिल फिर असल बीमारी के रात-दिन ढूँढ़ता है और मरीज को अपनी उस बीमारी के स्वर्गीय रोगाणु बहुत याद आते हैं और वह उनकी मेहरबानियों को याद करके रोता है। कुछ दिनों की बात है। हमने कहा, 'मिर्जा! तीन-चार महीने से हमें तकिए पर सुबह दर्जनों सफेद बाल पड़े मिलते हैं।' पूछा, 'अपने तकिए पर?' निवेदन किया, 'हाँ!', शरलक होम्ज के विशिष्ट जासूसी अंदाज में चंद मिनट गहरी जाँच-पड़ताल के बाद बोले, 'संभवतः तुम्हारे होंगे।' हमने कहा, 'हमें भी यही शक था।' बोले, 'भाई मेरे! तुमने तमाम उम्र जब्त और एहतियात से काम लिया है। अपनी निजी भावनाओं को हमेशा नियंत्रण-सीमा में रखा है। इसलिए तुम अड़तीस साल की उम्र में गंजे हो गए हो।' इस खोज के बाद उन्होंने हमें एक तरल खिजाब का नाम बताया, जिससे बाल काले और मजबूत हो जाते हैं। चलते समय उन्होंने हमें कड़ाई से सावधान किया कि तेल ब्रश से लगाया जाए वरना हथेली पर भी बाल निकल आएँगे। जिसके लिए वह और दवा कंपनी हरगिज जिम्मेदार न होंगे। वापसी में हमने बड़ी आतुरता की हालत में सबसे बड़े साइज की शीशी खरीदी और दुकानदार से रेजगारी भी वापस न ली कि इसमें सरासर समय की बर्बादी थी। चालीस दिन के लगातार इस्तेमाल से यह असर हुआ कि सर पर जितने भी काले बाल थे, वह तो एक-एक करके झड़ गए,




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