मिटटी का आदमी | MITTI KA AADMI - NBT
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
17
श्रेणी :
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वासिरेड्डी सीता देवी - VASIREDDI SITA DEVI
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भी धान के गट्ठर सिर पर रखकर ढो रहा था।
सुनहरा रंग फैलाते धान के दाने सांबय्या के दिल में
करोड़ों तारे बनकर चमक रहे थे।
धान के सैकड़ों गट्ठर आकर बनते चड्टे पर गिर
रहे थे। चट्टा तेजी से ऊपर उठता जा रहा था। जैसे
आकाश को छू रहा हो। नीचे धरती हंस रही थी।
ऐसे में ग्राम पंचायत का प्रधान कनकय्या पुलिस
दल के साथ वहां आकर कहने लगा कि जिस बंजर
में सांबय्या खेती करता रहा है, वह जमीन सरकार ने
आजादी की लड़ाई में जेल गए हुए एक व्यक्ति को दे
दी है और सांबय्या को उस जमीन और उसकी फसल
से बेदखल कर दिया गया है। .
सुनकर सांबय्या का दिमाग चकरा गया। “यह
जमीन मेरी है। यह फसल मेरी है।” उसके कंठ से
निकली आवाज दूर-दूर तक फैलने लगी। थका-हारा
सांबय्या चक्कर खाकर चट्टे के ऊपर से जमीन पर
गिर पड़ा। जड़ से टूटे पेड़ की तरह काली और गीली
मिट्टी पर गिरे अपने दादा के पास रवि एक छलांग में
पहुंच गया।
या का मुंह मिट्टी में धंसा था। बाहें दोनों
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फैलकर जमीन पर टिकी हुई थीं । मुट्ठियां कसी थीं।
पैरों की उंगलियां जमीन में गड़ी थीं। सांबय्या को
चित लिटाया गया, तो देखा कि सांबय्या के होठों ने
जहां जमीन को छुआ था, वहां अन्न के दाने पड़े थे।
उसके खुले मुंह में काली मिट्टी लाल खून में सनी हुई
थी। आंखों के गड़ढों में मिट्टी थी। चेहरे भर में मिट्टी
के पुते रहने से सांबय्या रवि को मिट्टी से बना आदमी
लग रहा था।
रवि सांबय्या पर लेट गया। उसकी अकड़ी हुई
उंगलियों को उसने खोला। सांबय्या के हाथ की
मुट्ठी भर मिट्टी पोते के हाथ में आ गयी ।
दादा की दी हुई मिट्टी ने पोते के होठों को छूकर
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