मेरी अपनी दुनिया | MERI APNI DUNIYA

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विष्णु चिंचालकर - VISHNU CHINCHALAKAR

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'खेल के समय खेल और काम से समय काम” मतलब खेल और काम मानो परस्पर विरोधी बाते हैं। एक का दूसरे के साथ कोई संबंध नहीं। यानि हर बात में अलगाव। इसके विपरीत यदि इन दोनों का समन्वय करें तो? हर काम खेल भावना से क्‍यों न हो? इस तरीके से तो काम का उबाऊपन तथा उसकी बोझिलता कम होकर खेल-खेल में ही काम अपने आप हो जाए। मैं तो भई काम को इसी रूप में लेता हूं। घर की आंगन की झाड़ू लगाना, कपडे धोना या ऐसे कोई भी काम जिससे कि हमारे बहुतेरे लोग जी कतराते हैं करने में मुझे मजा ही आता है। हर काम की अपनी विशेषता होती हे, उसका कोई धर्म होता है, हलचल में एक लयकारी होती है। उसे समझने और उसकी लय के साथ लय मिलाते ही वह काम आसान हो जाता है। काम के दौरान कई प्रकार के अनुभव मिलते रहते हैं और काफी कुछ सीखना हो जाता है। मेरे सारे ही चित्र इस प्रकार के खेल के परिणाम स्वरूप काम करते-करते ही बन पडे हें। में तो खेलता रहा और चित्र अपने आप उभरते रहे। मेरा प्रयास केवल उन्हें खोजने का या थोड़ा बहुत संवार कर दूसरों की अनुभूति के लिए प्रस्तुत करने का रहा। वह भी इतना संयमित कि उसका मूल स्वरूप नष्ट न होने पाए। दर्शकों को केवल इशारा मिल जाए ताकि अपनी कल्पनाशक्त के द्वारा वे अन्य बातें भी खोज पाए। आंगन में सफाई करते समय सूखी टहनियां, सूखे हुए पत्ते, फलियां, बीज आदि बेमतलब लगने वाली चीजें मेरा ध्यान खींचती रहीं। उन्हें निहारते, सहलाते हुए निकटता महसूस होने लगी और वे भी अपनी-अपनी विशेषताएं, अपना आकार, बनावट, रंगों की छटाएं वगैरा बारीकियां प्रगट करने लगीं। यही तो उनकी भाषा है। उसे समझ लेने के प्रयास में ही बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया। और फिर पानी की बोतल साफ करते हुए उसमें की काई, रंगों की प्लेट ब्रुश, या टेबल की जमी धूल साफ करते समय कपडे के पोछे पर फेले हुए धब्बे चित्र की प्रेरणा देने लगे। घर की सफाई करने पर झाड़ू में घाघरा फैला कर नाचने वाली गुडिया का आभास हुआ तो दीवार पर ही मकडी के जाले ने चिपक कर चित्र बना दिया। चप्पल टूटी तो मोनालिसा से मेल




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