एशिया के त्यौहार | FESTIVALS OF ASIA- NATIONAL BOOK TRUST

FESTIVALS OF ASIA- NATIONAL BOOK TRUST by अज्ञात - Unknownअरविन्द गुप्ता - Arvind Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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में अध्यापिका की बताई बातें ही सोचता रहा | हां, आग हमारे लिए जरूरी है, अच्छी है। आग के बिना न तो जाड़ों में घर गरम रह सकेंगे और न गरम खाना मिलेगा । लेकिन एक और किस्म की आग भी होती है। अगर मैं रसोई में गैस का चुल्हा लापरवाही से जलाऊं तो बह फट जाएगा और सारी रसोई में आग लग जाएगी । उस किस्म की आग बुराई के भगवान की बनाई होती है । उसी समय घंटी बजी। में उछल कर खड़ा हुआ, और बस्ता उठा कर सारे रास्ते दौड़ता हुआ घर तक पहुँचा | अब्बा अभी तक घर नहीं आए, थे, पर आते ही होंगे । उस खास बुधवार को वह हमेशा जरा जल्दी ही आ जाते है। उनके आते ही हम बाग में गए और झाडियों को एक कतार में लगाने लगे | दो झाड़ियों के बीच कूदने लायक काफी जगह रखी । अंधेरा होगया तो मैंने सावधानी से, त्वम्बी जलती लकड़ी से, सारी झाड़ियां जला दीं । एक-एक कर के सब जल उठीं, पीली, नारंगी और गुलाबी लपटें आकाश की ओर फेंकने लगीं । अचेरे में उनकी लपटें कितनी खूबसूरत लग रही थीं! पहले मैं जलती झाड़ियों के ऊपर से कूदा | उसके बाद मां और फिर अब्बा | में जल्दी से परे हट गया, लेकिन मेरे पांव अब भी जल रहे थे। मैं आग से डरता नहीं था, फिर भी मैं सांस रोके रहा | पूरी कतार खत्म कर के में ताली बजा कर हेसने लगा । मैंने पीछे मुड कर मां और अब्बा को देखा | सात बार हमने जलती झाड़ियों को फांदा । तब तक लपटें छोटी हो गई थीं, और लकड़ियां चटख नहीं रही थीं। थोड़ी देर तक जत्नती रहीं, फिर धीरे-धीरे बुझ गयीं। बाग पक बार फिर अधेरे में डूब गया। लेकिन राख बटोरते हाए भी में गाता रहा | सारी राख एक कोने में जमा कर दी !




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