एशिया के त्यौहार | FESTIVALS OF ASIA- NATIONAL BOOK TRUST
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
62
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)में अध्यापिका की बताई बातें ही सोचता रहा | हां, आग हमारे लिए जरूरी है, अच्छी है।
आग के बिना न तो जाड़ों में घर गरम रह सकेंगे और न गरम खाना मिलेगा । लेकिन एक और
किस्म की आग भी होती है। अगर मैं रसोई में गैस का चुल्हा लापरवाही से जलाऊं तो बह फट
जाएगा और सारी रसोई में आग लग जाएगी । उस किस्म की आग बुराई के भगवान की बनाई होती है ।
उसी समय घंटी बजी। में उछल कर खड़ा हुआ, और बस्ता उठा कर सारे रास्ते दौड़ता
हुआ घर तक पहुँचा |
अब्बा अभी तक घर नहीं आए, थे, पर आते ही होंगे । उस खास बुधवार को वह हमेशा जरा जल्दी
ही आ जाते है। उनके आते ही हम बाग में गए और झाडियों को एक कतार में लगाने लगे | दो झाड़ियों
के बीच कूदने लायक काफी जगह रखी । अंधेरा होगया तो मैंने सावधानी से, त्वम्बी जलती लकड़ी
से, सारी झाड़ियां जला दीं । एक-एक कर के सब जल उठीं, पीली, नारंगी और गुलाबी लपटें आकाश
की ओर फेंकने लगीं ।
अचेरे में उनकी लपटें कितनी खूबसूरत लग रही थीं!
पहले मैं जलती झाड़ियों के ऊपर से कूदा | उसके बाद मां और फिर अब्बा | में जल्दी से परे
हट गया, लेकिन मेरे पांव अब भी जल रहे थे। मैं आग से डरता नहीं था, फिर भी मैं सांस रोके
रहा | पूरी कतार खत्म कर के में ताली बजा कर हेसने लगा ।
मैंने पीछे मुड कर मां और अब्बा को देखा | सात बार हमने जलती झाड़ियों को फांदा ।
तब तक लपटें छोटी हो गई थीं, और लकड़ियां चटख नहीं रही थीं। थोड़ी देर तक जत्नती रहीं,
फिर धीरे-धीरे बुझ गयीं। बाग पक बार फिर अधेरे में डूब गया। लेकिन राख बटोरते हाए भी
में गाता रहा | सारी राख एक कोने में जमा कर दी !
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