हिरोशिमा का दर्द | HIROSHIMA KA DARD - NBT

HIROSHIMA KA DARD - NBT by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaतोशी मरुकी - TOSHIE MARUKI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“नदी! नदी!” मां चीख रही थीं। “पानी! पानी !” मीचन भी बिलख रही थी । तीनों किसी प्रकार लुढ़कते हुए नदी के तटबंध को पार करते हुए छप-छप करते हुए नदी के जलाशय में प्रवेश कर गए । लेकिन मीचन का हाथ छूट गया, मां भी विचलित हो गईं । “जल्दी-जल्दी, ठीक से हाथ पकड़ो |” नदी में बहुत सारे लोग थे, जो आग से बचकर यहां पहुंचे थे । कुछ बच्चों के कपड़े जल कर जगह-जगह से फट गए थे। पलकें, ओंठ जैसे कोमल अंग सूज कर फल-से गए थे | बच्चे, जिनकी आंखें भी नहीं खुल रही थीं धीमे-धीमे बुदबुदा रहे थे, “पानी, पानी...पानी दो... त्वचा झुलस गई थी। जगह-जगह से छिलके की तरह लटक रही थी। बहुत सारे लोग थे। कुछ भूत-पिशाच की तरह इधर-उधर घूम रहे थे।




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