हमें विद्युत के बारे में कैसे पता चला ? | HOW WE FIND ABOUT ELECTRICITY?

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आइज़क एसिमोव -Isaac Asimov

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गलवानी, फ्रैंक्लिन के प्रयोगों को जानता था। उसे इसका भी ज्ञान था कि बादलों की बिजली एक बहुत बड़ी चिंगारी है। यदि मेंढक के पैर खिड़की से तब बाहर रखें जब बादलों की बिजली के साथ तूफान चल रहा हो, तो वायु तथा पृथ्वी में विद्युत भरने के साथ क्‍या मृत मांसपेशियां भी फड़केंगी? जब बिजली कड़कने के साथ तूफान आया तब उसने मेंढक के कुछ पैरों को (जिनके साथ वह प्रयोग कर रहा था) पीतल के हकों पर रखा ताकि वे उड़कर सड़क पर न जायें। उसके बाद उसने उन पैरों को खिड़की के बाहर लोहे की जाली पर फैला दिया। वास्तव में मांसपेशियां फड़कीं तथा कुछ समय तक फड़कती रहीं। उसने जब साफ मौसम में, तूफान की अनुपस्तिथि में वही प्रयोग किया तो भी मांसपेशियां फड़कीं। यह बात कुछ पेचीदा थी। वास्तव में जब भी मांसपेशियों ने एक ही समय पर पीतल एवं लोहे जैसी दो भिन्न धातुओं से संपर्क किया, तो मांसपेशियां फड़कीं। गलवानी को लगा कि जीवन एवं विद्युत के बीच कोई सम्बन्ध होना चाहिये। सभी जीव विद्युत से भरे होते हैं और यह “जीव-विद्युत” मृत्यु के पश्चात तुरंत अदृश्य नहीं होती। अतः भिन्न धातुओं को छूने पर मांसपेशियां भी फड़कीं। तब इटली के एक वैज्ञानिक अल्लेस्सांद्रों वोल्टा ने भी मांसपेशियों के फड़कने पर आश्चर्य प्रगट किया। उसने विद्युत पर पर्याप्त कार्य किया था पर वह इस बात से संतुष्ट नहीं था कि मांसपेशियों में विद्युत की असाधारण मात्रा होती है। जब मांसपेशियों ने दो भिन्न धातुओं से संपर्क किया तो हो सकता है कि विद्युत मांसपेशियों से उत्पन्न न होकर धातुओं से उत्पन्न हुई हो। यदि ऐसा है तो शायद धातुओं का उपयोग मांसपेशियों के बिना विद्युत उत्पन्न करने किया जा सकता हो। यदि दो भिन्न धातुओं के छोरों को जोड़ते हुए गीली मांसपेशी रखने के स्थान पर नम गत्ते का टुकड़ा को रखा जाये तो क्‍या होगा? सन 1794 में वोल्टा ने प्रतिपादित किया कि बिना रगड़ के तथा बिना किसी मांसपेशी से विद्युत उत्पन्न हो सकती है। यदि दो भिन्न धातुओं को नमकीन जल में रखते हैं तो धातुओं में रासायनिक बदलाव होता है। नमकीन जल इसलिए क्‍योंकि नमकीन जल सुचालक होता है। इसलिए ये रासायनिक बदलाव किसी तरह से विद्युत से सम्बंधित हैं। दोनों में से एक धातु विद्युत द्रव प्राप्त करती है और घनात्मक आवेशित हो जाती है जबकि दूसरी धातु इसको छोड़ कर ऋणात्मक हो जाती है। वोल्टा ने अपने प्रयोगों को जारी रखा तथा अधिकाधिक आवेश को एकत्रित करने का प्रयत्ञ किया। सन 1800 में उसने नमकीन जल के प्यालों की एक पूरी श्रंखला तैयार की। उसने ताम्बे की एक पट्टी को एक प्याले से दूसरे प्याले में मोड़ा। टीन की पट्टी को दूसरे प्याले से तीसरे प्याले में मोड़ा। फिर ताम्र पट्टी को तीसरे से चौथे प्याले में मोड़ा। फिर टीन पट्टी को और इस तरह करता गया प्रत्येक पट्टी को अगले प्याले की पट्टी से जोड़ा। सभी ताम्र की पद्टियों में घनात्मक आवेश स्थापित हुआ तथा सभी टीन की पद्ठियों में ऋणात्मक आवेश स्थापित हुआ। सभी आवेश एक दूसरे से जुड़ते हुए प्रतीत हुए जिससे सभी प्यालों का मिलकर कुल आवेश केवल एक अकेले प्याले के आवेश से कहीं अधिक था।




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