मुक्तांगन | MUKTANGAN

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अनिल अवचट - ANIL AWACHAT

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वर्ष 1985 की एक दोपहर 15 अन्य चीज से पलायन कर सकते हैं, परन्तु ड्रग्स से नहीं। ड्रग्स न लेने से धीरे-धीरे एडिक्ट की परेशानी बढ़ती जाती थी। इतना कष्ट होता था कि उसे बयां करना भी मुश्किल था। कभी-कभी उस वेदना से व्यक्ति की मृत्यु भी हो जाती थी। मुझे पहली बार समझ में आया कि डृग्स का मंहगा एडिक्शन, समाज के सबसे गरीब तकके में सबसे ज्यादा व्याप्त था। कितनी विडम्बना थी! इस विषय पर लिखना भी एक बहुत बडी चुनौती थी। पर मैंने इस चुनौती को स्वीकार किया। मैं धनु की कहानी को आगे बढाऊंगा। यूनिवर्सिटी के मैदान में टहलते हुए मैंने उससे पूछा कि उसे डूग्स की लत कैसे पड़ी। उसने कहा, “आपको पता होगा कि मेरे पिता रोज शाम को घर पर पीते थे। वो संयम से पीते थे। पिताजी क्‍या पीते हैं? यह प्रश्न एकदिन मैंने मां से पूछा। मां ने उत्तर दिया, “वो कोई ड्रिंक है।' सालों बाद मुझे पता चला कि वो ड्रिंक - दारू थी। मैंने मां से पूछा, “वो रोज क्‍यों पीते हैं?' मां ने कहा कि पिताजी आफिस के तनाव भूलने के लिए दारू पीते थे।” धनु ने आगे बताया, “दसवीं कक्षा में मेरा दिमाग भी गहरे तनाव में था। मैं भी दारू पीकर अपने तनाव को भुलाना चाहता था। पर दारू ही क्यों? सिगरेट क्‍यों नहीं? मुझे लगा अगर मैं सिगरेट पियूंगा तो उसके बारे में घर में किसी को पता नहीं चलेगा। इस प्रकार मेरी लत शुरू हुई। साधारण सिगरेटों के बाद मैं उनमें चरस भरकर पीने लगा, और अंत में ब्राउन-शुगर।” अपने सार्वजनिक लेक्चर्स में में अक्सर 'सोशल ड्िंकिंग' की अवधारणा के बारे में बोलता था। आप चाहें घर में अच्छी क्वालिटी की शराब संयम से पीते हों, फिर भी बच्चे उसका क्या अर्थ निकालते होंगे? क्‍या बच्चों की सोच पर आपका कोई नियंत्रण हे? आप खुद निर्णय लें - क्‍या आप घर में शराब की संस्कृति को लाना चाहते हैं? मुझे याद है एक दिन मेरा एक मित्र परेशान और गम्भीर हालत में मुझसे मिलने आया। “तुम्हें पता है कि मेरे लड़के ने आज क्‍या किया? आज उसने एक सिगरेट पी। और महाशय अभी आठवीं में पढ़ते हैं।” मुझे एकदम धक्का लगा। मेरा मित्र निरंतर धूम्रपान करता था। (मैं मजाक में उसे ' अग्निहोत्री' - फॉयरमैन बुलाता था) मैंने उससे कहा, “देखो दोस्त, अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारा लड़का सिगरेट छोड़े, तो पहले तुम्हें खुद सिगरेट त्यागनी होगी। क्‍या तुम तैयार हो?” उसने उत्तर दिया, “मेरे लिए यह करना असम्भव हे।” “फिर अपने लड़के को कैसे मनाओगे?”




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