अध्यापक के नाम पत्र | LETTER TO A TEACHER

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सरला मोहनलाल - Saralaa Mohanlal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्यापक के नाम पत्र एक डोपोस्क्यूला स्थापित करने की व्यवस्था है जो सप्ताह में कम से कम दस घंटे कार्य करेगी। परंतु उसी धारा में बचाव का एक रास्ता भी रखा है। डोपोस्क्यूला की स्थापना स्थानीय परिस्थितियों का पता लगाने' के बाद ही की जाएगी। अतः निर्णय पुनः आपके हाथ में आ जाता है। परिणाम : नए माध्यमिक स्कूलों की स्थापना के प्रथम वर्ष में, फ्लोरेंस प्रांत के 51 में से 15 नगरों में डोपोस्क्यूला स्थापित किए गए। दूसरे वर्ष में इन्होंने छह नगरों में कार्य किम और 7.1 प्रतिशत विद्यार्थियों तंक इनका लाभ पहुंच सका। पिछले वर्ष इनका कार्य केवल पांच नगरों तक सीमित रहा और 2.9 प्रतिशत विद्यार्थी इससे लाभान्वित हुए । . आज राजकीय स्कूल प्रणाली में डोपोस्क्यूला का कोई स्थान नहीं है। आप मां-बाप को दोष नहीं दे सकते। उन्हें यह प्रतीत हुआ कि आप इस कार्यक्रम को आरंभ ही नहीं करना चाहते हैं। अन्यथा वे तो यहां तक तैयार थे कि अपमे बच्चों को डोपोस्क्यूला क्या, आपके घरों में भी भेज देते। विरेध : विकियो के मेयर ने डोपोस्क्यूला आरंभ करने के पहले राजकीय स्कूलों के अध्यापकों से उनकी राय जाननी चाही । पंद्रह पत्र आए। तेरह तो उसके विरोध में थे और दो समर्थन में। उन्होंने इसी तर्क को बार-बार दोहराया था कि यदि डोपोस्क्यूला अच्छे ढंग से न चल पाए तो उससे अच्छा तो यही होगा * कि वे न चलाए जाएं। शहर के लड़के मदिरालयों में देखे जाते हैं या सड़कों पर आवारा घूमते हैं। गांव के लड़के खेत में काम करने वापस चले जाते हैं। डोपोस्क्यूला से इसकी अपेक्षा कुछ तो लाभ होगा ? कोई भी चीज, इस परिस्थिति से बेहतर ही होती-आपके निरर्थक स्कूल भी। यदि आप डोपोस्क्यूला के विरोधी हैं, तो मेरी सलाह मानिए और इंस विरोध का प्रचार न कीजिए। दूसरों के विचार विद्वेषपूर्ण होते हैं। शायद उनके मन में यह विचार आए कि आप डोपोस्क्यूला का विरोध इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आप का के समय बच्चों के ट्यूशन करके कुछ अतिरिक्त धन कमाना चाहते हैं। भेदभाव की बात : कुंछ लोगों को समानता से घृणा है। फ्लोरेंस के एक स्कूल के प्रधानाचार्य ने एक मां से कहा, “आप बिलकुल चिंता न करें और अपने बच्चे को हमारे स्कूल में भेजें। सारे इटली में हमारा स्कूल एक ऐसा स्कूल 20 अनिवार्य स्कूलों में विद्यार्थियों को फेल नहीं करना चाहिए है जहां केवल उच्च और बड़े घर के बच्चे ही आते हैं।' लोकतंत्र की 'प्रभुसत्ता संपनन जनता को ठगना कितना सरल है। “अच्छे' लड़कों के लिए एक विशेष कक्षा आरंभ करके भी ऐसा किया जा सकता है। उनको व्यक्तिगत रूप से और जानना आवश्यक नहीं है। केवल उनके परिणाम पत्र, उनकी आयु, पता (गांव या शहर), जन्म स्थान (उत्तर के या दक्षिण के), पिता का व्यवसाय और प्रभावशाली प्रमाणपत्रों और दबावों पर एक नजर डालना ही काफी है। इस प्रकार, एक ही स्कूल में दो, तीन या चार प्रकार की माध्यमिक कक्षाएं चलाई जा सकती हैं। वर्ग 'एः में 'पुरानी किस्म” की माध्यमिक कक्षा होगी जो निर्विघध्न चलती है। सबसे अच्छे अध्यापक इस प्रकार की कक्षा को पढ़ाने के लिए लालायित रहेंगे । कुछ विशेष प्रकार के माता-पिता अथक प्रयास करके अपने बच्चों को इस कक्षा में डलवाने की कोशिश करेंगे। वर्ग 'बी' भी करीब-करीब उतनी हीं अच्छी श्रेणी की कक्षा होगी। और इसी तरह अन्य कक्षाओं में कोटि निम्न होती जाएगी। आगे बढाने का कर्तव्य : ये सब प्रतिष्ठित लोग हैं-प्रधानाचार्य और अध्यापक | ये सब अपने हित के लिए नहीं करते, वरन संस्कृति के हित के लिए करते हैं। मांबाप भी यह अपने लाभ के लिए नहीं करते। दूसरों को धक्का देकर स्वयं को आगे बद्यना उचित नहीं है। लेकिन बच्चे की खातिर यह पुनीत कर्तव्य बन जाता है। ऐसा न करना बड़ी लज्जा की बात होगी। पराजित : निर्धनतम मां-बाप कुछ नहीं करते। जो कुछ हो रहा है उसके प्रति उन्हें कोई संदेह भी नहीं है। गांव में, अपने समय में उन्होंने नौ वर्ष की अवस्था में ही स्कूल छोड़ दिया धा। अगर सव कुछ ठीक नहीं चल रहा है तो इसका अवश्य ही यह अर्थ है कि उनका लड़का पढ़ने के योग्य नहीं है। अध्यापक ने भी यही कहा था। वे बहुत ही सज्जन हैं। उन्होंने मुझे बिठाया और बच्चे की सब रिपोर्ट दिखाई। सारी परीक्षाओं में उसके आगे लाल निशान बने हुए थे। हमारे भाग्य में ही नहीं लिखा है कि हमारे बुद्धिमान संतान हो। वह भी हमारी तरह अब खेतों में काम करने जाएगा ।' 21




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