लाटरी | LOTTERY
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
25
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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प्रेमचंद - Premchand
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)है, तो दौड़ी हुई बाहर आयीं और दोनों को समझाने लगीं।
छोटे ठाकुर ने बिगड़कर कहा - आप मुझे क्या समझाती हैं, उन्हें समझाइये , जो
चार-चार टिकट लिये हुए बैठे हैं। मेरे पास क्या है, एक टिकट। उसका क्या भरोसा।
मेरी अपेक्षा जिन्हें रुपये मिलने का चौगुना चांस है, उनकी नीयत बिगड़ जाये, तो लज्जा
और दुःख की बात है।
ठक्राइन ने देवर को. दिलासा देते हुए कहा - अच्छा मेरे रुपये में से आधे तुम्हारे।
अब तो खुश हो।
बडे ठाकुर ने बीवी की जुबान पकड़ी - क्यों आधे ले लेंगे? मैं एक धेला भी न
दूँगा। हम मुरौवत और सहदयता से काम लें, फिर भी उन्हें पाँचवें हिस्से से ज़्यादा किसी
तरह न मिलेगा। आधे का दावा किस नियम से हो सकता है?- न बौद्धिक, न धार्मिक,
न नेतिक।
छोटे ठाकुर ने खिसियाकर कहा - सारी दुनिया का कानून आप ही तो जानते हैं।
“जानते ही हैं, तीस साल तक वकालत नहीं की है?'
“यह वकालत निकल जायेगी, जब सामने कलककत्ते का बेरिस्टर खड़ा कर दूँगा।'
“बैरिस्टर की ऐसी-तैसी , चाहे वह कलककत्ते का हो या लन्दन का! '
'मैं आधा लूँगा, उसी तरह जैसे घर की जायदाद में मेरा आधा है।'
इतने में विक्रम के बड़े भाई साहब सिर और हाथ में पट्टी बाँधे, लँगड़ाते हुए,
कपड़ों पर ताजा खून के दाग लगाये, प्रसन्न-मुख आकर एक आरामकुर्सी पर गिर पड़े।
बडे ठाकुर ने घबराकर पूछा - यह तुम्हारी क्या हालत है जी? ऐं, यह चोट केसे लगी?
किसी से मार-पीट तो नहीं हो गयी।
प्रकाश ने कुर्सी पर लेटकर एक बार कराहा, फिर मुसकराकर बोले - जी, कोई
बात नहीं, ऐसी कुछ बहुत चोट नहीं लगी।
“कैसे कहते हो कि चोट नहीं लगी? सारा हाथ और सिर सूज गया है। कपड़े खून
हुत्न लॉटरी.
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