हमारी खेती का वसीयत नामा | AGRICULTURAL TESTAMENT
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
74
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
अल्बर्ट हॉवर्ड - Albert Howard
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प्रभाकर पंडित - PRABHAKAR PANDIT
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द्रवों में यह तुलना में ह्यूमस में कर्ब (कार्बन) अधिक मात्रा में उपस्थित होता है ।
औसतन झ्यूमस में कर्ब 55 से 58 प्रतिशत होता है जबकि नत्र की मात्रा 3 से 6
प्रतिशत होती है । ह्यूमस का कर्ब॑ नत्रजन अनुपात (सी:एन रेशो) 10:1 होता है।
पौधों की ताजगी,पत्तियों की चमक, फूलों का गहरा रंग, चारों ओर फैली
जड़ों का विस्तार आदि लक्षणों से मिटटी में ह्यूमस की मौजूदगी का अंदाजा लगाया
जा सकता है । झ्यूमस के कारण बीजों का विकास अच्छा होता है, ह्युमस से उगाये
गये अन्न का रंग, स्वाद, पोषकता बढ़ती है, अन्न की आवश्यकता कम होती है ।
ह्यूमसयुक्त मिट्टी में उगाएं गए चारे से पशुओं की बढ़वार भलीभाँति
होती है उनका रंग, उनकी त्वचा चमकदार बनती है, उनकी आँखें भी तेजस्वी,
चमकीली दिखाई देती हैं ।
कैसे टिकाऊ होगी पोषकता?
मानव ने खेती करना शुरू किया, पशुपालन बढ़ाया और प्रकृति के चक्र
में हस्तक्षेप शुरू हुआ । खाद्यान्न उगाने और ऊन, चमड़ा तथा कपास का धागा और
कपड़ा इन सबके लिए मिट्टी की उपजाऊ क्षमता का शोषण हुआ । उसकी पूर्ति
जैविक खाद के उपयोग से की जाने लगी या फिर नई भूमि हाँककर पश्चिम के
देशों की औद्योगिक क्राति का पेट भरने लगा ।
इसी के साथ साल दर साल बढ़ रही जनसंख्या का पेट भरने के लिए
जंगल काटे जा रहे हैं । कुछ स्थानों पर लगातार खेती से अनुपयोगी हुई जमीन
को जंगल लगाकर उपयोगी बनाया गया है । ऐसी घटनाएँ कभी-कभार होने वाले
युध्दों के कारण भी घटती हैं । पश्चिमी देशों में तेजी से बढ़ रहे उद्योगों की ओर
जाने लगे । शहर बढ़ते गए वैसे उनकी भूख भी बढ़ती गई । इसके लिए अधिक
खाद्यान्न तेजी से पैदा करने के लिए रासायनिक उर्वरकों की जरूरत पड़ने लगी ।
कुछ स्थानों पर दोनों तरह की खाद का उपयोग होने से खेती का संतुलन बिगड़ता
गया ।
कैसे बनती है जैविक खाद और कैसे वह फसलों को मिलती हैं?
1. खेत की जुताई करते समय पिछली फसल के अवशेष-जड़ें, ठूँठ, तने,
0 ।
पत्तियाँ आदि मिट्टी में गड़ जाते हैं और सड़कर मिट्टी में मिलते हैं ।
की - पोखर और छोटे तालाबों के पानी पर तैरने वाला नीला-हरे रंग का शैवाल
( द
3. चाणगाहों से प्राप्त सड़ा-गला चाय
4. पशुओं का मूत्र
5. पशुओं का गोबर
6. घरों में निकला और शहरी कचरा
7. उद्योगों से निकला कचरा...
8. मानव मल
9, नदी नालों और समुद्र में उगा हुआ घास चारा, फसलों की कटाई और
गहाई के उपरांत पौधों की जड़ें भूमि में रह जाती हैं । वे सड़ गलकर बनी जैविक
खाद मिट्टी में मिल जाती है । इस खाद के साथ वातावरण से अवशोषण कर प्राप्त
सूक्ष्म जीवाणुओं की खाद मिलकर मिट्टी को पोषक बनाती है जिससे अच्छी उपज
प्राप्त होती है ।
उक्त वर्णित जैविक खाद के प्रकार महत्वपूर्ण होते हुए भी वास्तव में
अनेक अड़चनों के कारण खेती में उनका उपयोग हो नहीं पाता । इसी के
परिणामस्वरूप लाईबेग नामक वैज्ञानिक की सिफारिश के अनुसार जैविक खाद की .
आपूर्ति में आई कमी को रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से पूरा करने की शुरुआत
हुई । परंतु जैविक खाद में उपस्थित मायकोरायजा जैसे जीवाणुओं की पूर्ति
रासायनिक उर्वरकों द्वारा किया जाना संभव नहीं है ।
इन्दौर प्रणाली से निर्मित जैविक खाद
वर्ष 19124 और 1931 के बीच इन्दौर में स्थापित आय पी आय
(इन्स्टिट्यूट ऑफ प्लान्ट इन्डस्ट्रीज) अनुसंधान केन्द्र में पशु और वनस्पति के
अवशेषों के उपयोग से जैविक खाद बनाने की प्रणाली विकसित की गई । इस
संस्थान की स्थापना के लिए इन्दौर के होलकर दरबार ने स्थान व जमीन उपलब्ध
कराये जिसके प्रत्युपकार में इस प्रणाली को “इन्दौर मेथड ऑफ कम्पोस्ट मेकिंग
यह नाम दिया गया । .
अल्बर्ट हॉवर्ड को यह प्रणाली विकसित करने में 7 वर्ष का लंबा समय
लगा । परंतु इसके पहले भी 25 वर्षों के लंबे अंतगल तक उन्होंने इस तकनीक
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