मानसरोवर भाग -6 | MANSAROVAR PART 6
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
331
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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प्रेमचंद - Premchand
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ज्यों ही सूर्य निकला, तीन ल्राख बुंदेले तालाब के किनारे पहुँचे। जिस समय
भालदेव शेर की तरह अखाड़े की तरफ चला, दिलों में धड़कन-सी होने लगी। कल
जब कालदेव अखाड़े में उतरा था, बुंदेलों के हौसले बढ़े हुए थे; पर आज वह बात
न थी। हृदय में आशा की जगह डर घुसा हुआ था। कादिरखाँ कोई चुटीला वार
करता तो लोगों के दिल उछल कर होठों तक आ जाते। सूर्य सिर पर चढ़ा जाता
था और लोगों के दित्र बैठ जाते थे। इसमें कोई संदेह नहीं कि भालदेव अपने
भाई से फुर्तीत़ा और तेज था। उसने कई बार कादिरखाँ को नीचा दिखलाया; पर
दिल्ली का निपुण पहलवान हर बार सँभल जाता था। पूरे तीन घंटे तक दोनों
बहादुरों में तलवारें चलती रहीं। एकाएक खटाके की आवाज हुई और भालदेव की
तलवार के दो टुकड़े हो गए। राजा हरदौल अखाड़े के सामने खड़े थे। उन्होंने
भालदेव की तरफ तेजी से अपनी तलवार फेंकी। भालदेव तलवार लेने के लिए
झुका ही था कि कादिरखाँ की तलवार उसकी गर्दन पर आ पड़ी। घाव गहरा न
था, केवल एक 'चरका' था; पर उसने लड़ाई का फैसला कर दिया।
हताश बुंदेले अपने-अपने घरों को लौटे। यद्यपि भालदेव अब भी लड़ने को तैयार
था; पर हरदौल ने समझा कर कहा कि भाइयों, हमारी हार उसी समय हो गई
जब हमारी तलवार ने जवाब दे दिया। यदि हम कादिरखाँ की जगह होते तो
निहत्थे आदमी पर वार न करते और जब तक हमारे शत्रु के हाथ में तलवार न
आ जाती, हम उस पर हाथ न उठाते; पर कादिरखाँ में यह उदारता कहाँ? बलवान
शत्रु का सामना करने में उदारता को ताक पर रख देना पड़ता है। तो भी हमने
दिखा दिया है कि तलवार की लड़ाई में हम उसके बराबर है और अब हमको यह
दिखाना है कि हमारी तलवार में भी वैसा ही जौहर है। इसी तरह लोगों को
तसलल्ली देकर राजा हरदौल रनिवास को गए।
कुलीना ने पूछा - लाला, आज दंगलत्र का क्या रंग रहा?
हरदौल ने सिर झुका कर जवाब दिया - आज भी वही कल का-सा हाल रहा।
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